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से समझौता करके उन मुनियों ने अर्द्धफालक आदि वस्त्र धारण कर लिये । उनके अनुयायी श्रावकों ने साधु के परम्परागत निर्ग्रन्थ दिगम्बर स्वरूप के स्थान पर वस्त्रधारी स्वरूप को मान्यता प्रदान कर दी । सचेलक सम्प्रदाय का यह प्रारम्भ था । आचार्य स्थूलभद्र उनके आदिगुरु थे ।
दिगम्बर मुनियों का एक समुदाय ऐसा भी था जिसने उत्तरापथ का त्याग तो नहीं किया, परन्तु निर्ग्रन्थ परम्परा के प्रति अपनी आस्था को जीवित रखा। उनमें से कुछ ने दुर्भिक्षकाल में सल्लेखना अंगीकार करके शरीर त्याग दिये । कुछ ने आस्थावान समृद्ध श्रावकों की सहायता से, अचेलक धर्म का निर्वाह करते हुए काल - यापन किया । ऐसे भी कुछ साधु थे जिन्होंने अकाल के उपरान्त, सुभिक्ष आ जाने पर, प्रायश्चित लेकर अथवा दीक्षा-छेद आदि दण्ड स्वीकार करके, अपने दोषों का परिमार्जन किया । उन्होंने पुनः शास्त्रसम्मत आचरण अंगीकार किये। इस प्रकार उस भयंकर दुष्काल के समय भी उत्तरापथ में निर्ग्रन्थ मुनियों की परम्परा विद्यमान रही। उसका उच्छेद नहीं हुआ। उन मूलसंघी मुनियों ने आचार्य भद्रबाहु को ही अपना आचार्य माना और उन्हीं की परम्परा का अनुशासन स्वीकार किया । अब पाटलिपुत्र के स्थान पर मथुरा उन अचेलक साधुओं का केन्द्र हो गया था ।
इस चिक्कवेट्ट पर साधना करते हुए आचार्य भद्रबाहु का, उत्तरापथ के उन अचेलक दिगम्बर मुनि संघों से, निरन्तर सम्पर्क बना रहा । उत्तरापथ से समय-समय पर श्रावक और साधु, दक्षिणापथ की यात्रा पर आते रहे और दीर्घकाल तक संघ के नियामक आदेश- निर्देश, यहीं से प्राप्त करते रहे । भद्रबाहु के उपरान्त उनके शिष्य विशाखाचार्य को भी साधु-समुदाय में वैसी ही मान्यता प्राप्त हुई ।
तुम्हारे इतिहास के उस घोर दुर्भिक्ष काल में, यह जो मुनि संस्था उत्तरापथ से स्थानान्तरित होकर दक्षिणापथ में स्थापित हुई, वह वर्तमान काल तक अविच्छिन्न रूप से यहाँ विद्यमान है । यदि कभी जान पाओगे अपने आचार्यों का इतिहास, तो तुम्हें ज्ञात होगा कि जैसे तीर्थकरों को जन्म देने का एकाधिकार उत्तरापथ ने अपने पास सुरक्षित रखा है, उसी तरह जिनवाणी की प्रभावना करनेवाले आचार्य दक्षिणावर्त की भूमि ने ही तुम्हारे देश को प्रदान किये हैं ।
आचार्य भद्रबाहु ने कुछ दिवस तक संघ सहित यहाँ विश्राम किया । पश्चात् उन्होंने स्वयं यहीं ठहरने का संकल्प लेकर, मुनिसंघ को तमिल देश की ओर प्रस्थान करने का आदेश दिया । यह जो चन्द्रगुप्त बसदि देख
१६ / गोमटेश - गाथा