________________
साधना करने की आवश्यकता नहीं पड़ी।
हुण्डावसर्पिणी के दुष्प्रभाव से, इस चौथे काल में अनेक मर्यादाओं का खण्डन हुआ। अनेक परम्पराएँ टूटी हैं। संयोग की बात है कि उनमें से अनेक परम्पराओं के खण्डन में कहीं न कहीं बाहुबली का व्यक्तित्व जुड़ा रहा है। इसी कारण वे लोक-मानस में पूज्य-पुरुष की तरह स्थापित हो गये। उन्हें लोकोत्तर सम्मान का पात्र माना गया। मोक्ष-मार्ग के प्रथम पथिक ___ यह एक मर्यादा है कि युग के प्रारम्भ में, प्रथम तीर्थंकर के मोक्ष जाने के पूर्व किसी साधक का निर्वाण नहीं होता। तीर्थंकर ही उस महामार्ग के प्रथम पथिक होते हैं। परन्तु इस काल में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के मुक्त होने के पूर्व ही बाहुबली ने मोक्ष प्राप्त कर लिया। काल का व्यतिक्रमण ___ भवसागर से पार होकर मोक्ष प्राप्त करने की प्रक्रिया केवल चौथे काल में ही सम्भव होती है। परन्तु इस हुण्डावसर्पिणी में काल की उस मर्यादा का भी उल्लंघन हुआ। बाहुबली जब मोक्ष गये तब चौथा काल प्रारम्भ नहीं हुआ था। तीसरे काल का कुछ समय शेष था। चक्रवर्ती का मान-भंजन
चक्रवर्ती नरेश अपने समय का सर्वशक्तिमान, सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक प्रभुता सम्पन्न महापुरुष होता है। उसका मान अभंग ही रहता है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में पराजय की पीड़ा से, उसका परिचय कभी होता ही नहीं। परन्तु इस बार इसका भी अपवाद प्रस्तुत हुआ। परमवीर, स्वाधीनता-सम्राट बाहबली के हाथों, उनके ही अग्रज चक्रवर्ती सम्राट भरत को एक बार नहीं, चार बार पराजित होना पड़ा। उनकी दिगन्त-विजयिनी चतुरंगिणी के समक्ष, उनकी प्रजा की आँखों के सामने ही उनका मान मर्दित हुआ। देवी शक्तियों द्वारा संरक्षित उनका विश्वविजयी चक्र भी, पराजय के दारुण दुःख से उन्हें त्राण देने में असमर्थ रहा। अनुपम योग-साधना
दीर्घकाल तक एक ही आसन से अडिग निष्कम्प ध्यानस्थ होने का कीर्तिमान भी सदैव प्रायः तीर्थंकर मुनीशों ने ही स्थापित किया है। ११० / गोमटेश-गाथा