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परन्तु इस बार सामान्य साधक बाहुबली ही उस क्षेत्र में भी असामान्य सिद्ध हुए। आदिनाथ भगवान् ने दिगम्बरी दीक्षा लेते ही छह मास तक उपवासपूर्वक एक आसन से समाधि लगायी थी। उनके पश्चात् किसी भी तीर्थंकर ने, या सामान्य साधक ने, तपश्चरण की ऐसी महानता को प्राप्त नहीं किया। परन्तु बाहुवली ने दीक्षा धारण करते ही, अडिगअकम्प प्रतिमायोग का अवलम्बन लिया और पूरे एक वर्ष तक फिर पलक भी नहीं उठायी। ऐसी दीर्घ, निष्कम्प साधना का कोई दूसरा उदाहरण तपश्चरण के इतिहास में नहीं मिलता। क्षमा वीरस्य भूषणम्
पिता के द्वारा प्राप्त अपने छोटे से राज्य की सार्वभौमिकता अक्षुण्ण रखने के लिए बाहुबली ने अपने अग्रज चक्रवर्ती सम्राट भरत की युद्ध चुनौती को निर्भयतापूर्वक स्वीकार किया, यह उनके अजेय पौरुष का प्रतीक था। अतिक्रमण की भावना से लिप्त भरत को पराजित करने के उपरान्त, उन्होंने अपने अग्रज के अनीति भरे आचरण के प्रति तत्काल क्षमा-भाव धारण कर लिया, यह उनकी अनुपम क्षमाशीलता का उदाहरण था। अद्भुत वैराग्य
कौटुम्बिक कलहकी इस घटना में स्वार्थी संसार की घृणित प्रवृत्तियों का यथार्थ अवलोकन करके बाहुबली ने वैराग्य धारण किया। अद्भुत एकाग्रतापूर्वक दीर्घतम काल तक वे अडोल, अकम्प ध्यानस्थ रहे, यह उनकी लोकोत्तर साधना का प्रमाण था। अपने युग के वे प्रथम मोक्षगामी महापुरुष हुए, यह उनके व्यक्तित्व की एक और उल्लेखनीय विशेषता थी। ___ बाहुबली की इन्हीं विशेषताओं ने, उनके व्यक्तित्व के इन्हीं विलक्षण पक्षों ने, जन-मानस में उनके लिए इतनी श्रद्धा, ऐसी शक्ति भावना उत्पन्न कर दी, कि कालान्तर में तीर्थंकरों के ही समान उनकी भी पूजा प्रतिष्ठा होना प्रारम्भ हो गयी। अनीति पर नीति की, और असद् पर सद् की विजय के लिए, प्रतीक पुरुष की तरह उन्हें मान्यता प्राप्त
यदि बाहबली अपनी प्रतिभा के द्वारा अद्वितीय महापुरुष हए तो यह भी उतना ही सत्य है कि संसार द्वारा उन्हें दिया गया मान-सम्मान और श्रद्धा भी अद्वितीय ही है। मोक्ष-पथ के किसी सामान्य साधक ने इतनी
गोमटेश-गाथा / १११