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करने में प्रयत्नशील हो गये। ___ 'तब चक्रवर्ती भरत का आदेश सावधान होकर सुने महाराज, या तो सम्राट की सेवा में उपस्थित होकर उनका अनुशासन स्वीकार करें, या फिर युद्धक्षेत्र में उनके आक्रोश का सामना करने के लिए प्रस्तुत रहें। पोदनपुर नरेश के लिए तीसरा कोई मार्ग नहीं है।' आदेश सुनाकर भरत का दूत गर्व से ऐंठता हुआ राजसभा से जाने के लिए उद्धत हुआ। _ 'दूत अबद्ध माना गया है, यही आज तेरा भाग्य है दक्षिणांक! अन्यथा तुझे ज्ञात हो जाता कि बाहुबली को युद्ध का निमन्त्रण देने वाला मस्तक अधिक देर देह पर टिक नहीं पाता। कह देना अपने स्वामी से कि राज्य की सीमा पर, उनका वीरोचित स्वागत करने में, पोदनपुर की सेना से तनिक-सा भी प्रमाद नहीं होगा।'
दूत के प्रस्थान करते ही वह राजसभा आन्दोलित हो उठी। युद्ध की संयोजना के लिए अमात्य और सेनापति, सभासदों के साथ विचारविमर्श करने लगे। दूसरे दिन प्रातःकाल सीमा की ओर ससैन्य प्रस्थान की घोषणा करने के उपरान्त ही सभा विसर्जित हुई।
गोमटेश-गाथा | ७७