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के शरीर में बह रहा है। प्राण देकर भी यह संघर्ष टाल सका तो सेवक अपने जीवन को सार्थक मानेगा।' ___'आपसे यही आशा है महाभाग ! आप भरत के मन्त्री भर नहीं, इक्ष्वाकु वंश की मर्यादा के संरक्षक भी हैं। जैसे भी हो यह संघर्ष आपको टालना है। आज यही इस संतप्त जननी की प्रार्थना और अनुरोध, आदेश
और निर्देश सब कुछ है। एक बात और कहती हूँ। भरत और बाहुबली दोनों यशस्वती के ही पुत्र हैं। अपने सम्राट से कह देना, पुत्र का पराभव और जननी का जीवन, एक साथ अयोध्या की प्रजा नहीं देख पायेगी।' _ 'इस सेवक को और लज्जित न करें महादेवी ! दोनों पक्षों के मन्त्रियों तक यह मन्तव्य पहुँचाऊँगा। चक्रवर्ती की आज्ञा से अधिक राजमाता की भावना का सम्मान होगा और दोनों पक्षों को रक्तपात से बचाने का कोई मार्ग निकलेगा, ऐसा मुझे विश्वास है। इन चरणों का आशीर्वाद ही मेरी शक्ति होगी।'
सादर प्रणिपात करके महामन्त्री कक्ष से बाहर निकल गये ।
गोमटेश-गाथा / ८७