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बाहुबली इस सारे उपद्रव से अनजान, अपने ही भीतर खोये हुए अब तक उसी चिन्तन में मग्न थे। दोनों पक्ष के सहस्रों-सहस्र कण्ठों ने 'बाहुबली महाराज की जय' की तुमुल ध्वनि से उस युद्ध-क्षेत्र का गगन गुंजा दिया। उसी जयकार के नाद से बाहबली की विचार-समाधि भंग हुई। उन्होंने देखा लज्जित, म्लान मुख भरत, धरती की ओर निहारते खड़े हैं। अयोध्या के सेनाध्यक्ष अमात्यों और सामन्तों को अपने चरणों में गिरता भी उन्होंने देखा। अपने हाथ की वरद मुद्रा से उन्होंने सबको अभय प्रदान किया।
गोमटेश-गाथा / ६७