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वे सभी अट्टान्नवे भ्राता एक साथ भगवान् ऋषभदेव की शरण में पहुँच गये । संसार की असारता और परिग्रह की पराधीनता का यथार्थ दर्शन उन्हें हो चुका था । संसार, शरीर और भोगों के प्रति वैराग्य धारण करके, उन्होंने भगवान् के समक्ष मुनि-दीक्षा धारण की और मुनियों की परिषद् में विराजमान हो गये।
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गोमटेश-गाथा / ७३