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का जो भाग अब शेष बचा है, आत्मकल्याण में ही उसका नियोजन करना बुद्धिमानी है। ___ सभा उसी प्रकार चल रही थी। नत्य गान और राग-रंग लोगों को वैसे ही प्रमुदित कर रहे थे, परन्तु महाराज ऋषभदेव के लिए वहाँ अब कुछ भी शेष नहीं था। राजसिंहासन पर वे उसी तन्मयता के साथ, वैसी ही तल्लीनता से विराजमान दिखाई देते थे, परन्तु यह आसन उनके जड़ शरीर का आसन था। उनकी चेतना बहुत दूर, किसी दूसरे ही लोक में खो गई थी, जहाँ संसार के समस्त पदार्थ, अपनी भाँति-भाँति की पर्यायों में अनवरत नृत्य करते उन्हें दिखाई देते थे। पहली नीलांजना की तरह प्रतिक्षण जो ध्वंश होते हैं, दूसरी नीलांजना की तरह प्रतिक्षण जो उत्पन्न होते हैं और नृत्य के तारतम्य की तरह जो सदाकाल ध्र व हैं, ऐसे उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य को एक साथ धारण करनेवाले, वस्तुस्वरूप के अनादि-निधन नृत्य का साक्षात्कार, अब उनकी आत्मानिष्ठ चेतना को सहज रूप से हो रहा था। विचारों की इस तन्द्रा में कई घड़ी तक तल्लीन रहने के उपरान्त जब महाराज ऋषभदेव की चेतना उस उत्सव की ओर लौटी, तब वह सारा राग-रंग उन्हें नीरस-सा प्रतीत हुआ। वे विश्राम के लिए अन्तःकक्ष की ओर गतिमान हुए। उस दिन वह सभा असमय ही विजित हो गयी।
भगवान् ऋषभदेव ने वह पूरी रात्रि चिन्तन में ही व्यतीत की। राग के शैवाल से भरा हुआ उनका मानस-सरोवर आज उद्वेलित हो उठा था। विराग की तंग-तरंगें उस शैवाल को निर्मल करती जा रही थीं। वीगरागता और निस्पृहता के पंकज उस ऋषभदेव के दार्शनिक चिन्तन में उस प्रभात का उदय होने लगा था। ___महाराज ऋषभदेव ने अपनी दोनों महारानियों के समक्ष अपने वैराग्य का संकल्प प्रकट किया। महारानी यशस्वती को एक-सौ पुत्रों की जननी होने का गौरव प्राप्त था। महारानी सुनन्दा की कोख से बाहुबली का जन्म हुआ था। दोनों रानियों ने एक-एक कन्या, ब्राह्मी और सुन्दरी को जन्म दिया था। इन सभी भाई-बहनों में भरत सबसे ज्येष्ठ थे। आदि तीर्थंकर ऋषभदेव किसी दिन परिव्रजित होकर योगीश्वर बनेंगे, यह सम्भावना उन महिलारत्नों को ज्ञात थी। उन्होंने अपने पति के इस महान् निर्णय में बाधा पहुँचाने का विकल्प नहीं किया, परन्तु खिन्नता और वियोग जनित शोक की पीड़ा से वे अछूती नहीं रह सकीं।
अयोध्यापति आदिनाथ ने उत्कृष्ट पारिवारिक परम्पराओं की स्थापना करते हुए ज्येष्ठ पुत्र भरत का राज्याभिषेक किया। द्वितीय ६४ / गोमटेश-गाथा