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किक और मनोहारी नृत्य उपस्थित किया। बिजली की चमक के समान चंचल वह अप्सरा, अपने संयत शरीर-संचालन के द्वारा, ललित भावभंगिमाओं का प्रदर्शन करती हुई, बेसुध-सी होकर नृत्य कर रही थी, तभी उसकी आयु पूर्ण हो गयी। नृत्य की भावमुद्रा पूर्ण होने के पूर्व ही उसका शरीर विलीन हो गया। देवराज इन्द्र, इस घटना के प्रति पूर्व से सावधान थे। उन्होंने उसी निमिष उस नृत्य के लिए दूसरी दिव्यांगना को उपस्थित कर दिया। नूतन दिव्यांगना ने पलक झपकते ही नीलांजना के उन्हीं वस्त्रालंकारों में, उसी गति से नृत्य के उस लय-ताल को निरबाध रूप से साध लिया । विक्रिया शरीर के स्वामी देवों के लिए यह बहुत सामान्य प्रक्रिया थी। मरण के उपरान्त उनका शरीर अदृश्य होकर विलीन हो जाता है और उसी क्षण दूसरा देव या देवी उसी रूप में उनके स्थान की पूर्ति कर देता है। यही कारण है कि देवताओं के उत्सव और भोग कभी बाधित नहीं होते। उनके जीवन में कहीं रस भंग नहीं होता। उनके स्थान एक पल भी रिक्त नहीं रहते। इसीलिए जन्ममरण करते हुए भी वे 'अमर' कहलाते हैं।
नर्तकी नीलांजना के देहपात की इस घटना को सामान्य दर्शकों की, नृत्य के मोहक पाश में बंधी हुई आंखें देख ही नहीं पायीं। उन्हें इस परिवर्तन का आभास भी नहीं हुआ। ऋषभदेव को क्षण के हजारवें अंश के लिए इस रस भंग का बोध हुआ। तीर्थंकर तो जन्म से ही 'अवधि ज्ञान' के स्वामी होते हैं। उस ज्ञान की सहायता से विचार करते ही वास्तविकता उनके सामने प्रत्यक्ष हो गयी। जन्म-दिन के महोत्सव को गरिमा प्रदान करती हुई नीलांजना का मरण, और मरण की विभीषिका को छिपाते हुए उसी क्षण, वहीं दूसरी नीलांजना का जन्म भले ही देवताओं के लिए सामान्य घटना रही हो, भले ही सामान्य जनों को उसका बोध न हुआ हो, परन्तु ऋषभदेव को उस घटना ने भीतर तक झकझोर दिया। जीवन की क्षणभंगुरता और मरण की अनिवार्यता उनके चिन्तन में विद्युतरेखा-सी कौंध गयी। ऋषभदेव विचारने लगे—धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थ की साधना करते-करते जीवन का अधिकांश भाग समाप्त हो गया। समाज को भी उन्हीं पुरुषार्थों की साधना का मार्ग आज तक दिखाया। 'स्व' और 'पर' का यथार्थ कल्याण जिसकी साधना से प्राप्त होता है, उस मोक्ष पुरुषार्थ के प्रति आज तक कोई प्रयत्न नहीं किया। प्रजा को भी अब तक उस पथ से परिचित नहीं कराया। जीवन का खेल तो ऐसा ही क्षणभंगुर खेल है। कौन-सा क्षण, उसका अन्तिम क्षण होकर प्रकट हो जायेगा, कहना कठिन है। पर्याय
गोमटेश-गाथा / ६३