________________
वरिष्ठ बाहुबली को युवराज घोषित करके पोदनपुर का स्वतन्त्र राज्य प्रदान किया। शेष पुत्रों को छोटे-छोटे राज्य बाँट दिये । इस प्रकार निर्ममत्व भाव से पुराने वस्त्रों की तरह उस विशाल राज्यलक्ष्मी का त्याग करके उन्होंने आत्मकल्याण के लिए वन गमन किया। सिद्धार्थक वन की अटवी में जाकर उन्होंने पंच मुष्ठियों द्वारा अपने सिर के केश, घास की तरह उपाट कर फेंक दिये। समस्त वस्त्राभूषण त्याग दिये। सिद्धों को नमस्कार करते हुए, अहिंसा, सत्य, अनृत, शील और अपरिग्रह, इन पाँच महाव्रतों की उत्कृष्ट मर्यादा धारण करके, वे परम दिगम्बर योगिराज, वन के उस नीरव एकान्त में समाधि का सहारा लेकर आत्मशोध में संलग्न हो गये। भरत बाहुबली आदि समस्त पुत्रों ने प्रजाजनों सहित उनका पूजन किया।
इस प्रकार महापुरुष ऋषभदेव ने एक ओर जहाँ विषम परिस्थितियों से जूझते हुए सदाचारपूर्ण, मर्यादित जीवन-पद्धति का आदर्श, लोक के समक्ष प्रस्तुत किया, वहीं उन्होंने इन्द्रिय और मन पर अंकुश लगाकर, रागद्वेष की भावनाओं का उन्मूलन किया। विषय-कषायों पर विजय प्राप्त करके संयम और त्याग का श्रेष्ठ उदाहरण जग के समक्ष रखा। ___ संसार में जोवन पद्धति के वे आदि प्रणेता, मोक्षमार्ग के भी आदि प्रणेता बने। अपने स्वयं के स्वाधीन प्रयत्नों-प्रयोगों से आत्मा को परमात्मा बनाने का रहस्य, नर से नारायण बनने की प्रक्रिया, उन्होंने अपने जीवन में उतारकर स्वयं उसका आदर्श मानव समाज के समक्ष प्रस्तुत किया। योग-विद्या के साथ निस्पृह मौन साधना अंगीकर करके वे योगेश्वर कठोर तपश्चरण में लीन हो गये।
योग धारण करने के उपरान्त छह मास तक भगवान आदिनाथ ने एक ही आसन से अखण्ड ध्यान किया। उनका शरीर कृश हो गया। सिर पर दीर्घ जटाएँ झूलने लगीं। छह मास के पश्चात् जब उनकी ध्यानसमाधि टूटी तब तक उनका शरोर लता-गुल्मों से गुंथा हुआ, अनेक जीव जन्तुओं का विश्राम स्थल बन चुका था। अन्यत्र विहार करके उन्होंने पूनः केशलोंच किया और अपनी नियमित साधना में से दो घड़ी का समय निकाल कर वे भिक्षाटन के लिए ग्रामों नगरों तक जाने लगे। परन्तु भक्तिपूर्वक आहार देने के विधि-विधान का लोगों को ज्ञान नहीं होने के कारण, छह-सात मास तक उन्हें आहार उपलब्ध नहीं हो सका। एक ग्राम से दूसरे ग्राम तक और एक नगर से दूसरे नगर तक, भगवान् को आता हुआ देखकर लोग वस्त्र, आभरण, अलंकार, मणि-मुक्ता, फल,
गोमटेश-गाथा / ६५