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यहाँ पधार रहे हैं। तीर्थ-वन्दना के लिए जाता हुआ उनका चतुर्विध यात्रासंघ आचार्य भद्रबाहु के चरणचिह्नों के सान्निध्य में कुछ दिन विश्राम कर के अग्रसर होगा, ऐसा वे लोग कह रहे थे।
आचार्य नेमिचन्द्र के चरणों का स्पर्श, पूर्व में एकाधिक बार मुझे प्राप्त हो चुका था। आगम सिद्धान्त के सर्वोपरि ज्ञाता के रूप में उन दिनों दूर-दूर तक उनकी ख्याति थी। विशाल मुनिसंघों के मध्य, इसी चिक्कवेट पर, उनके अनेक प्रवचन हो चुके थे। उनके शिष्यों की संख्या बहुत बड़ी थी। इस यात्रा में भी उनके कुछ शिष्य साथ में पधारेंगे, ऐसी चर्चा सुनाई दे रही थी। __आचार्य अभयनन्दि के शिष्य, सिद्धान्त के पारगामी आचार्य नेमिचन्द्र अत्यन्त कुशल आचार्य थे। चामुण्डराय एक कुशल शास्त्राभ्यासी और दार्शनिक चिन्तक भी थे, इस कारण उनके ऊपर आचार्य की अनुकम्पा और वात्सल्य भाव रहना स्वाभाविक था। चामुण्डराय भी नेमिचन्द्राचार्य को अतिशय सम्मान और गुरु की तरह ही मान्यता देते थे। उनके अगाध आगम ज्ञान से वे निरन्तर लाभान्वित होते रहते थे। राजनैतिक उत्तरदायित्व के निर्वहन में भी चामुण्डराय को आचार्यश्री से परामर्श और मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता था। सैद्धान्तिक चर्चाएँ और प्रश्नोत्तर तो उन दोनों के मध्य प्रायः ही होते रहते थे। चामुण्डराय को शास्त्रों का अच्छा अभ्यास था। उनमें एक सन्तुलित दार्शनिक के सभी गुण थे और नेमिचन्द्राचार्य अपने स्नेहभाव द्वारा, अपनी ज्ञान की धारा से, उन गुणों को प्रोत्साहित करते रहते थे।
षटखण्ड आगम सिद्धान्त के मर्मज्ञ उन आचार्य के चरणों का पावन स्पर्श, आज पुनः प्राप्त होगा, यह संवाद मुझे पुलकित कर गया।
गोमटेश-गाथा / २६