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करके उन निरीह, निस्पृह, यथाजात यतियों ने और यतिनायकों ने, यहीं अपने तपस्वी जीवन के धवल सौधों पर समाधिमरण के उज्ज्वल कलश स्थापित किये। आस्थावान गृहस्थ भी, राजा और प्रजा, स्त्री और पुरुष इस पवित्र भूमि पर शान्ति सहित अपने जीवन का, निराकुल अन्त करने के लिए लालायित रहते थे। तुम्हारे पुराशास्त्री बतायेंगे कि ऐसे लगभग एक सहस्र दिगम्बर मुनियों के समाधिमरण अनुष्ठानों का उल्लेख, इस नगर के शिलालेखों में आज भी उपलब्ध है। जिन अज्ञात साधकों के नाम शिलाओं पर अंकित नहीं हए, उनकी संख्या तो और भी अधिक है।
गोमटेश-गाथा | २७