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१३, समारम्भ
जिनदेवन के उत्साहपूर्ण निर्देश में इस निर्माण का प्रारम्भ हुआ। रूपकार के परामर्श पर अनेक तक्षक नियुक्त कर लिये गये। श्रमिक भी सहस्रों की संख्या में नियोजित किये गये। उनके निवास के लिए वहीं, दोड्डुवेट की तलहटी में, अनेक विशाल पर्णशालाओं का निर्माण किया गया। अलग पाकशाला बनाकर उन सबके भोजन की व्यवस्था की गयी। सामने एक छोटा प्राकृतिक जलाशय वहाँ था ही, उसे स्वच्छ और गहरा करने का कार्य भी प्रारम्भ हो गया। __ तक्षकों तथा श्रमिकों के पारिश्रमिक की व्यवस्था भाण्डारिक कर रहे थे। उन सबके लिए प्रातराश और भोजन की संयोजना स्वयं सरस्वती के हाथों में थी। सरस्वती की प्रबन्ध कुशलता के कारण पूरे कटक की भोजन- व्यवस्था में कोई त्रुटि या प्रमाद ढूँढ़ पाना असम्भव ही था। छोटे-बड़े सबके लिए चिन्तापूर्वक, नित नवीन व्यंजन और मिष्टान्न बनवाकर, अत्यन्त अनुग्रह और आग्रहपूर्वक वितरण करती हई वह ममतामयी गृहिणी, साक्षात् अन्नपूर्णा-सी लगती थी।
इस महान् श्रम-साध्य कार्य के लिए रूपकार का पारिश्रमिक निर्धारित करने का उपक्रम स्वयं चामुण्डराय ने किया । रूपकार का उत्तर उपयुक्त ही था
'जैसा महान निर्माण आज तक कभी कहीं हुआ ही नहीं, ऐसे लोकोत्तर निर्माण के लिए पारिश्रमिक भी लोकोत्तर ही होना चाहिए। आज कैसे उस पारिश्रमिक का निर्धारण किया जाय। प्रतिमा का निर्माण होने पर प्रथम दर्शन के समय, उन चरणों की न्यौछावर करके, जो भी महामात्य प्रदान कर देंगे, वही होगा मेरा पारिश्रमिक।'
चामुण्डराय रूपकार की लगन से प्रभावित और उसकी क्षमता