________________
काल उनके जीवन दीप का निर्वाण हुआ। देह-जीव की पृथकता के वीतराग दर्शन को जैसा अपने जीवन में प्रतिपादित किया था, वैसा ही वह तत्व, उन्होंने अपने सहज और पीडारहित मरण के द्वारा प्रमाणित कर दिया।
सच रे पथिक ! जीवन का इतना सार्थक समापन, और मरण का ऐसा उज्ज्वल आवाहन, तब मैंने पहली बार देखा।
१८ / गोमटेश-गाथा