________________
प्रबुद्ध जन भी अनीति और अधर्म की ओर आकर्षित होंगे।
भूत-प्रेतों का बीभत्स-नत्य स्पष्ट करता है कि जनमानस पर अब प्रायः उन्हीं की छाया रहेगी।
जगन चमकने का संकेत यह सन्देश देता है कि धर्म की ज्योति जिनके भीतर प्रज्ज्वलित नहीं है, ऐसे पाखण्डी लोग भी धर्मोपदेशक बनकर, धर्म के नाम पर लोकरंजन और स्वार्थ-साधन करेंगे।
क्वचित् किंचित् जल सहित, शुष्क सरोवर देखकर यह समझना चाहिए कि धर्म की स्व-पर कल्याणी वाणी का तीर्थ, धीरे-धीरे शुष्क हो जायेगा। कहीं-कहीं क्वचित् ही उसका अस्तित्व शेष बचेगा। __ स्वर्ण-थाल में खीर खाता हुआ श्वान देखने से फलित होता है कि आगामी काल में नीच वृत्तिवाले चाटुकार ही लक्ष्मी का उपभोग करेंगे। स्वाभिमानी जनों को वह प्रायः दुष्प्राप्य होगी।
स्वप्न में गजारूढ़ मर्कट इतनी ही घोषणा करने आया था कि भविष्य में राजतन्त्र, चंचल मतिवाले अन्धानुकर पटु-जनों के हाथों से विद्रूपित होगा।
मर्यादा का उल्लंघन करके समुद्र की लहरों ने यह संकेत दिया है कि अब शासक और लोकपाल, न्यायनीति की सीमाओं का उल्लंघन करेंगे। वे उच्छखल होकर स्वयं अपनी प्रजा की लक्ष्मी, कीर्ति स्वाधीनता आदि का हरण करेंगे और नारियों की लज्जा, सतीत्व आदि से खेलेंगे।
बछड़ों के द्वारा रथ का वहन इस बात का प्रतीक है कि अब लोगों में युवावस्था में ही, धर्म और संयम के रथ को खींचने की शक्ति पायी जायेगी। वृद्धावस्था में वह शक्ति क्षीण हो जायेगी।
गज पर आरूढ़ होने वाले राजपुत्रों का ऊँट पर आसीन दिखाई देना, यह संकेत देता है कि अब राजपुरुष, व्यवस्थित और शान्तिपूर्ण मार्गों का परित्याग करके, असन्तुलित और हिंसा से भरे मार्ग पर चलेंगे।
धल-धूसरित रत्नों का अवलोकन यह अप्रिय सन्देश देता है कि भविष्य में संयमरत्न के रक्षक, निर्ग्रन्थ तपस्वी भी एक दूसरे की निन्दा और अवर्णवाद करेंगे।
काले हाथियों का द्वन्द्व युद्ध बताता है कि गरजते हुए मेघ, सानुपातिक जलवृष्टि अब प्रायः नहीं करेंगे। यत्र-तत्र अवर्षण और अतिवर्षण से प्रजा को कष्ट होगा।' __सम्राट के स्वप्नों की इस परिभाषा ने सभी को आकुलित कर दिया। आचार्य भद्रबाहु द्वारा विचारित बारह वर्ष के अकाल की भविष्यवाणी, लोगों को अब और भी भयानक लगने लगी। सम्राट चन्द्रगुप्त की मनो२४ / गोमटेश-गाथा