________________
मिट्टी के अभाव में भी घट की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। यदि इसी प्रकार नहीं मानेंगे तो प्रत्यक्ष आगम विरोध प्राप्त होगा । बाह्य निमित्त कारण के अभाव से भी मिट्टी स्वयमेव ही घट बनती है ऐसा मानने पर समस्त मिट्टी स्वयमेव घट रुप परिणमन हो जाना चाहिये किंतु इस प्रकार उपलब्ध नही हं ओर अनुपलब्ध को ही उपलब्ध मानना मिथ्यात्व है । उसी प्रकार केवल बाह्य निमित्त से कार्य होता है। तो कुंभारादि बाह्य निमित्त से घट बनता है मानने पर मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती तथा कुंभारादि के हाथ, पैर आदि ही घट रुप परिणमन कर जाना चाहिए किंतु ऐसा भी उपलब्ध नहीं है। केबल लोकिक घटादि कार्य के लिये दोनों कारणों का सदभाव चाहिये ऐसा नहीं किंतु अलौकिक अभूतपूर्व महान कार्य मोक्ष के लिये भी दोनों कारणों का समन्वय अनिवार्य है ।
मोक्ष के लिये रलत्रय परिणत स्वात्मा उपादान कारण है एवं बाह्य द्रव्य, क्षेत्र, कालादि, निर्ग्रन्थ मुनि लिंग आदि निमित्त कारण है । अन्तरंग परिणाम एवं बहिरंग साधनों के माध्यम से मोक्ष रूप कार्य सिद्ध होता है । आध्यात्मिक सम्राट मूल आम्नाय के कर्णधार कुन्दकुन्द आचार्य अष्टपाहुड में बताये हैं -
णवि सिज्झदि वत्थधरो जिणसासणे जह वि होइ तित्थयरो। णगो विमोक्लमम्गो सेसा उम्मग्गया सब्वे ।।२३।।
जिन शासन में वस्त्रधारी तीर्थकर को भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। एक केवल निर्ग्रन्थता ही मोक्ष मार्ग है अन्य सर्व उन्मार्ग हैं, कुमार्ग हैं। जैसे आचार्य कहे हैं --
कारण द्वयं साध्यं न कार्य मेकेन जायते । द्वन्द्वोत्पाद्यमपत्यं किमेकेनोत्पद्यते क्वचित् ॥
जो कार्य दो कारण से होता है वह कारण से नहीं हो सकता है । जैसे पुत्र उत्पत्ति रुप कार्य माता पिता रूप दो कारणों से होता है।