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भी हो, समभाव से भायो गयो आत्मा ही मोक्ष प्राप्त करती है इसमें संदेह नहीं ।
निमित्त उपादान से कार्य होता है - ___इस संघ का मानतः स्जद शशिकानारी निश्नमाभासीय है, क्योंकि प्रत्येक कार्य बाह्याभ्यान्तर कारण से होता है। जैसा कि ताकिक शिरोमणि स्वामी समन्त भन्न ने स्वयंभू स्तोत्रमें कहा है
बाह्यतरोपाधि समग्रतेयं, कार्येषु ते द्रव्यगतः स्वभावः । नवान्यथा मोक्षविधिश्च पुंसां, तेनाभिवंद्यस्त्वमषिबूधानाम ॥६०।।
प्रभाचंद्राचार्य की टीका -
बाह्येत्यादि । बाह्य च इतरश्चाभ्यन्तर: तौ च तो उपाधीच हेतु उपादान सहकारि कारणे तयोः समग्रता संपूर्णता । इयं प्रतीयमाना क्वः कार्येषु घटादिषु । ते तत्र मते । कथम्भूता सा? द्रव्यगत: स्वभाव: जीवादि पदार्थगतमर्थ क्रियाकारि स्वरुपं । अन्यथा एतस्मात्तत्समग्रतातत्स्वभावता प्रकारात् अन्येन तदस्वभावता प्रकारेण । नैव मोक्ष विधिश्च । च शब्दोऽपि शब्दार्थः । न केवलं घटादि विधानं नैवान्येन प्रकारेण घटते किंतु मोक्षविधिरपि । पुंसा मुक्यर्थिनां । यत एवं तेन कारणेन अभिवंद्यस्त्वं बचानां गणधर देवादीनां विपश्चिता। कथम्भूतः? ऋषिः परमद्धि सम्पन्नः ।।
बाह्य कारण अर्थात निमित्तकारण एवं आभ्यान्तर कारण अर्थात उपादान कारणों की परिपूर्णता से ही कार्य की उत्पत्ति होना यह द्रव्य का स्व स्वभाव है अर्थात जीवादि पदार्थगत अर्थ क्रियाकारित्व के लिये दोनों कारणों का समन्वय होना अनिवार्य है। जैसे घट रुप कार्य के लिये योग्य मिट्टी उपादान कारण है एवं कुंभार, चक्र, पानी, चीवर आदि बाह्य कारण है । यदि केवल योग्य मिट्टी है परतु बाह्य योग्य कुंभारादि कारणों का अभाव होने पर मिट्टी घट रुप परिणमन नहीं करती है । उसी प्रकार योग्य कुंभारादि के सद्भाव होने पर भी योग्य