Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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प्रस्तावना
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से ज्ञात होता है कि इस मंत्र में पांच खण्ड और बारह हजार लोक हैं। बताया गया है
प्रथमो व्यवहाराख्यो ज्योतिराख्यो द्वितीयकः । तृतीयोऽपि निमित्ताख्यश्चतुर्थोऽपि शरीरजः ।। 1।। पंचमोऽपि स्वराज्यश्च पंचवण्डै रिय मता ।
द्वाहन मिटा हो जिनोदिया। व्यवहार, ज्योतिष, निमित्त, शरीर एवं स्वर ये पांच खपद 'भद्रबाहु संहिता में हैं। इस ग्रंथ में एक विलक्षण बात यह है कि पांत्र मुगलों के होने पर दूसरे खण्ड को मध्यम और तीसरे खण्ड' को उत्तर खण्ड कहा गया है।
इस संस्मरण में हम केवल 27 अध्याय ही दे रहे हैं 1 30वां अध्याय परिशिष्ट रूप से दिया जा रहा है। अत: 27 अध्यायों के वर्ण्य विषय पर विचार करता आवश्यक है। ___ प्रथम अध्याय में ग्रन्थ थे. व विषयों को नानिमा प्रस्तुत की गयी है। आरम्भ में बताया गया है कि यह देश कृषिप्रधान है. अतः मिकी जानकारी-- किस वर्ष किस प्रकार की नाभाल होगी प्राप्त करना थायक और मुनि दोनों के लिए आवश्यक था । यद्यपि मुनि कार्य जायान में रत रहना है, पर आहार आदि-क्रियाओं को सम्पन्न करने के लिए उन्हें श्रावकों के अधीन रहना पड़ता था, अतः सुभिक्ष-दुभिक्ष की जानकारी प्राप्त करना उनके लिए आवश्यक है। निमित्तशास्त्र का ज्ञान ऐहिक जीवन के कबहार को चलाने के लिए आवश्यक है । अतः इस अध्याय में निमित्तों के शान करने की प्रतिमा की गयी है और वऱ्या विषयों की तालिका दी. यी है। ___द्वितीय अध्याय में उल्का-निमित्त का वर्णन किया गया है । बताया गया है कि प्रकृति का अन्यथा भाव विकार कहा जाता है; इस शिकार को देवकार शुभाशुभ को सम्बन्ध में जान लेना चाहिए । रात को जो तारे टूटकर गिरते हुए जान पड़ते हैं, वे उल्काएं हैं । इस ग्रन्थ में उत्का के धिण्या, उल्का, अशनि, विद्य त् और तारा ये पाँच पद हैं। उसका फल 15 दिनों में, धिया और अशनि का 45 दिनों में एवं तारा और विश्व त् का इन दिनों में प्राप्त होता है । तारा का जितना प्रमाण है उससे लम्बाई में दूना धिया का है। विद्युत नाम बाली उल्का बड़ी कुटिल ---टेढ़ी-मेढ़ी और गीतगामिनी होती है। अनि नाम की उल्का चनाकार होती है, पौरुषी नाम की उल्का स्वभावतः लम्बी होती है तथा गिरते समय बढ़ती जाती है । ध्वज, मत्स्य, हाथी, पर्वत, वामन, चन्द्रमा, अश्व, सप्त रज और हंस के समान दिखाई पड़ने वाली उल्का शुभ मानी जाती है । श्रीवत्स, वन, शंख और स्वस्तिकरूप प्रकाशित होने वाली उल्का कल्याणकारी और सुभिक्षदायक है। जिन उल्काओं के सिर का भाग मकर के समान और पूंछ गाय के समान हो, वे उल्काएँ