Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
होता था । इन दोनों देशों के ज्योतिष सिद्धान्त निमित्तों पर आश्रित थे। सुभिक्षदुभिक्ष, जय-पराजय एवं यात्रा के शकुनों के सम्बन्ध में वैसा ही लिखा मिलता है, जैसा हमारे यहाँ है । प्राकृतिक और शारीरिक दोनों प्रकार के अरिष्टों का विवेचन ग्रीस और रोम सिद्धान्तों में मिलता है। पंचसिद्धान्तिका में जो रोमक सिद्धान्त उपलब्ध है, उससे महगणित की मान्यताओं पर भी प्रकाश पड़ता है।
भद्रबाहु संहिता का वर्ण्य विषय
अष्टांग निमितों का इस एक ही ग्रन्थ में वर्णन किया गया है। यह ग्रन्थ द्वादशांग वाणी के वेत्ता श्रुतकवली भद्रबाहु के नाम पर रचित है। इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में बतलाया गया है कि प्राचीन काल में भगध देश में नाना प्रकार के वैभव से युक्त सजगृह नाम का सुन्दर नगर था । इस नगर में राजगुणों से परिपूर्ण नानागुणसम्पन्न संजित (प्रसेनजित सभवतः बिम्बसार का पिता) नाम का राजा राज्य करता था। इस नगर के बाहरी भाग में नाना प्रकार के वृक्षों से युक्त पाण्डुगिरि नाम का पर्वत था । इस पर्वत के वृक्ष फल-फूलों से युक्त समृद्धिशाली थे तथा इन पर पक्षिगण सबढ़ा मनोरम कलरव किया करते थे। एक समय श्रीभद्रवाह आवार्य इसी पाण्डुगिरि पर एक वृक्ष के नीचे अनेक शिष्य-शिष्यों से युक्त स्थित थे, राजा सेनजित ने मम्रीभूत होकर आचार्य से प्रश्न किया
पार्थिधानां हितार्थाय भिक्षणां हितकाम्यया । श्रावकाणी हितार्याय दिव्य ज्ञानं ब्रवीहि नः ।। शुभाशुभं समुदभूतं श्रुत्वा राजा निमित्ततः । बिजिगीषुः स्थिरमतिः सुखं याति महीं सदा ।। राजभिः पूजिताः सर्वे भिक्षवो धर्मचारिणः । विहरन्ति निरुद्विग्नास्तेन राजाभियोजिताः ।। सुखग्राहा लघुग्रंथं स्पष्टं शिष्यहितावहम् । सर्वज्ञभाषितं तथ्यं निमित्तं तु सवोहि नः ॥
इस ग्रन्थ में उल्का, परिवेष, विद्यत्, अभ्र, सन्ध्या, मेघ, बात, प्रवर्षण, गन्धर्वनगर, गर्भलक्षण, यात्रा, उत्पात, ग्रबार, ग्रहयुद्ध, स्वप्न, मुहर्त, तिथि, करण, शकुन, पाक, ज्योतिष, वास्तु, इन्द्रसम्बदा, लक्षण, व्यंजन, चिह्न, लग्न, विद्या, औषध प्रति सभी निमित्तों के बलाबल, विरोध और पराजय आदि विषयों के विरूपण करने की प्रतिमा की है। परन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ में जितने अध्याय प्राप्त हैं, उनमें मुहर्त तक ही वर्णन मिलता है । अवशेष विषयों का प्रतिपादन 27वें अध्याय से आगे आने वाले अध्यायों में हुआ होगा ।
श्रद्धेय पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार द्वारा लिखित ग्रंथपरीक्षा द्वितीय भाग