________________
अनेकान्त
[वर्ष १०
ऐसा यदि हम करेंगे तो मेरा विश्वास है कि विज्ञानका दारोमदार है। पर इस Election पुनः एक समय ऐसा आवेगा जब लोग जैनधर्मकी Theory की व्याख्या अपने विशद एवं व्यवस्थित महत्ताको, उसकी वैज्ञानिकताको एवं सर्वप्रियता तथा सूक्ष्मरूपमें सब कुछ जाननेवाले सर्वज्ञ जैनतथा सच्चाईको मानने और समझने लगेगे। तीर्थकरोंद्वारा पहले ही की गई है, जिसे शायद
भगवान महावीर केवल जैनधर्मके ही नहीं, अभी हमारे आधुनिक वैज्ञानिक कुछ और आगे जब विश्वके लिए परमपूज्य हुए और उन्होंने विहार बढेंगे तब पावेगे कि हाँ, जो कुछ जैनधर्ममें पुद्गल प्रान्तको ही नहीं सारे देश और इस पृथ्वीको भी और जीवके बारेमें कहा गया है उसीके ऊपर सारे अपने चरणोंसे पवित्रता प्रदान की। अतः विहारको मंमारका अस्तित्व है। जैनधर्ममें वार्णित ६ तत्वोंको ही क्यों सारे भारतको भगवान महावीरके लिए गर्व लोग भले ही अपने धार्मिक अहमें न माननेका दावा है और होना चाहिये । महात्मा गांधीने भी भगवान करते हों, पर आज तक हजारों वर्षोंसे भी किसीने महावीरकी जीवनीसे अहिंसाका व्यावहारिक ज्ञान उनका खडन अब तक नहीं किया है-न जिन्होंने लिया और युग बदल दिय।
चेष्टा की है वे सफल ही हो पाये हैं। जैनधर्म और आज हमारे वैज्ञानिक जैनधर्मके सूक्ष्म वैज्ञानिक इसके तत्वोंकी विशद वैज्ञानिक जानकारी हर तरह प्रतिपदन या तत्वोंसे एकदम अज्ञान है और सम- किमी भी व्यक्तिको ऊपर ही उठावेगी एवं देश या झते हैं कि विज्ञानका Election या low Theopv संसार भी इसी तरह ऊपर उठ सकता है तथा पश्चिमसे निकला है-जिसके ऊपर आज सारे सच्चा सुख और स्थाई शान्ति स्थापित होसकती है।
कीर-शासन-जयन्ती
( श्री जिनेश्वरप्रसाद, जैन)
श्रावण कृष्णा प्रतिपदाका पुण्य-दिवस श्री अजर, अमर, अनन्त गुणोंके पिण्ड शुद्ध-बुद्ध-सिद्ध१००८ भगवान महावीर स्वामीका शासन-जयन्ती स्वरूपको प्राप्त करो, जिससे मंसारके दुःखोंसे छूटदिवस है। इस दिन आजसे लगभग २५०० वर्ष पूर्व कर निजानन्दरसमें लवलीन हो सको।' भगवानके भगवानका प्रथम उपदेश उस समयके प्रकाण्ड- प्रथम आध्यात्मिक उपदेशका सार यही था। हम तत्त्ववेत्ता गौतम इन्द्रभूतिके मिलते ही विहारप्रान्त- सबको उसपर चलकर आत्म-कल्याण करना चाहिए की राजगृही नगरीके विपुलाचलपर हुआ था। और शासन-जयन्तीके स्मरणार्थ अपना कर्तव्य
भगवानने अपने उपदेशमें कहा कि 'ऐ जगतके पालन करना चाहिए। प्राणियो ! तुम शरीरसे ममत्वका त्यागकर आत्माके