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अलंकारचिन्तामणि
वर्ण्यस्य साम्यमन्येन स्वतः सिद्धेन धर्मतः ।
भिन्नेन सूर्यभीष्टेन वाच्यं यत्रोपमैकदा ॥ स्वतो भिन्नेन स्वतः सिद्धेन विद्वत्संमतेन अप्रकृतेन सहप्रकृतस्य यत्र धर्मतः सादृश्यं सोपमा। स्वतः सिद्धेनेत्यनेनोत्प्रेक्षानिरासः । अप्रसिद्धस्याप्युत्प्रेक्षायामनुमानत्वघटनात् । स्वतो भिन्नेनेत्यनेनानन्वयनिरासः । वस्तुर्न एकस्यैवानन्वये उपमानोपमेयत्वघटनात् । सूर्यभीष्टेनेत्यनेन हीनोपमादिनिरासः ।'
अर्थात्-स्वतः पृथक् तथा स्वतः सिद्ध आचार्योंके द्वारा अभिमत अप्रकृतके साथ प्रकृतका एक समय धर्मतः सादृश्य वर्णन करना, उपमालंकार है। इस लक्षणमें 'स्वतः सिद्धेन' यह विशेषण नहीं दिया जाता तो उत्प्रेक्षामें भी उपमाका लक्षण घटित हो जाता, क्योंकि स्वतः अप्रसिद्धका भी उत्प्रेक्षामें अनुमान उपमानत्व होता है। इसी प्रकार 'स्वतः स्वतोभिन्नेन' यदि लक्षण में समाविष्ट न किया जाता तो अनन्वयमें भी उपमाका लक्षण प्रविष्ट हो जाता, क्योंकि एक ही वस्तुको उपमान और उपमेय रूपसे अनन्वयमें कहा जाता है। यदि उपमाके उक्त लक्षणमें 'सूर्यभिष्टेन' पदका समावेश नहीं किया जाता तो हीनोपमामें भी उपमाका उक्त लक्षण प्रविष्ट हो जाता। अतः उपमाके लक्षणमें 'सूर्यभिष्टेन' आचार्याभिमत दिया गया है ।
___ उपमाका यह लक्षण पदसार्थकपूर्वक दिया गया है। आचार्य अजितसेनने प्रत्येक पदकी सार्थकता दिखलाकर अन्य अलंकारोंके साथ उसके पृथक्त्वकी सिद्धि की है। उनके लक्षणका प्रत्येक पद अन्य अलंकारोंसे पृथक्त्व घटित करता है। उक्त लक्षणमें 'धर्मतः' पद श्लेषालंकारका व्यवच्छेदक है, क्योंकि श्लेषमें केवल शब्दोंकी समता मानी जाती है, गुण और क्रियाकी नहीं । स्पष्ट है कि अजितसेनका उक्त लक्षण अव्याप्ति, अतिव्याप्ति और असम्भव इन तीनों दोषोंसे रहित है।
उपमालंकारके पूर्णोपमा और लुप्तोपमाके अतिरिक्त, धर्मोपमा, वस्तूपमा, विपर्यासोपमा, अन्योपमा, नियमोपमा, अनियमोपमा, समुच्चयोपमा, अतिशयोपमा, मोहोपमा, संशयोपमा, निश्चयोपमा, श्लेषोपमा, सन्तानोपमा, निन्दितोपमा, प्रशंसोपमा, आचिख्यासोपमा, विरोधोपमा, प्रतिषेधोपमा, चदूपमा, तत्त्वाख्यानोपमा, असाधारणोपमा, अभूतोपमा, असम्भावितोपमा, विक्रमोपमा, प्रतिवस्तूपमा आदि अनेक भेद किये हैं।
पूर्णोपमाके श्रौती और आर्थी, भेदोंका भी कथन किया है। पूर्णोपमाके वाक्यगा, समासगा और तद्धितगाके भेदसे श्रौती और आर्थी इन दोनोंके तीन-तीन भेद बतलाये गये हैं। सादृश्यवाचक शब्दोंमें, इव, वा, यथा, समान, निभ, तुल्य, संकाश, नीकाश, प्रतिरूपक, प्रतिपक्ष, प्रतिद्वन्द्व, प्रत्यनीक, विरोधी, सदृक्, सदृश, सदृक्ष, सम, संवादी, सजातीय, अनुवादी, प्रतिबिम्ब, प्रतिच्छन्द, सरूप, सम्मित, सलक्षणभ, सपक्ष, प्रख्य, प्रतिनिधि, सवर्ण, तुलित, कल्प, देशीय, देश्य, वत्की गणना की है। उपमाका बहुत
१. अलंकार चिन्तामणि, ज्ञानपीठ संस्करण, ४।१८ तथा उसके आगेका गद्यभाग, पृ. सं. १२० ।
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