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तथा स्वर्गीया साध्वी श्री कंचनकंवरजी तथा अन्य अनेक व्यक्तियों के आत्मीय सहयोग ने उन सभी कठिनाईयों को पार कर मुझे आगे बढ़ाया। मेरी अग्रगण्या साध्वी नगीनाजी के कुशल और आत्मीय निर्देशन में यह कार्य संभव हो सका है। प्रो. मुनिश्री महेन्द्र कुमारजी व मुनिश्री धनञ्जय कुमारजी का अनायास प्राप्त सहयोग ग्रंथ की सुषमा बढ़ाने वाला रहा।
इसी परिप्रेक्ष्य में डॉ. महावीरराज गेलड़ा जयपुर (पूर्व कुलपति, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं), प्रो. बच्छराज दूगड़ (विभागाध्यक्ष अहिंसा एवं शान्ति विभाग, जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूं), डॉ. जे.पी.एन.मिश्रा (रीडर-जीवन विज्ञान विभाग), डॉ. कमलचन्द सोगानी महत्वपूर्ण सहयोग के लिये आभार। वेद-विज्ञान के लब्ध प्रतिष्ठत एवं ख्यातनाम विद्वान डॉ. दयानंद भार्गव ने अपने व्यस्त क्षणों में भूमिका लिखकर ग्रन्थ की गरिमा बढ़ाई है। प्रो. डॉ. दामोदर शास्त्री ने प्रस्तुत विषय पर प्रस्तावना लिखी।
अहिंसा एवं शान्ति विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत समणी डॉ. सत्य प्रज्ञाजी के श्रम और कौशल ने संशोधन, सम्पादन आदि कार्यों को अपना कार्य मानकर निष्पन्न किया। समणी अमितप्रज्ञाजी का भी यथेष्ट सहयोग इसमें रहा।
मेरी सृजन यात्रा में जिन्होंने अनुग्रह आशीर्वाद बरसाया है, उनके प्रति मेरे मन में कृतज्ञता के भाव है। सहृदय जनों के असीम उपकार को आभार जैसे छोटे शब्द से सीमित नहीं करना चाहती। उनके स्नेहिल सहयोगपूर्ण क्षणों को भीतर ही संचित रखकर आनन्द मिलेगा। ___ उन सभी महापुरूषों, विचारकों, लेखकों, गुरूजनों, मनीषियों, विद्वानों के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापन करती हूं जिनकी साहित्य-निधि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में मेरा मार्गदर्शन कर सकी।
शोध-प्रबंध की प्रस्तुति को नया परिवेश प्रदान करने में अनेक ग्रंथों, निबंधों, परिपत्रों का यथावश्यक उपयोग किया गया है। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जो भी इस कार्य में सहयोगी बनें, सबके प्रति सादर आभारी हूं। संसार पक्षीय मातुश्री सुन्दरदेवी जीरावला (धर्मपत्नी स्वर्गीय सेठ सुखराजजी जीरावला) की प्रेरणा से भाई सोहनलाल पारसमल जीरावला ने प्रकाशन में उत्साह दिखाया। सबके प्रति शुभ भावना।
साध्वी गवेषणाश्री
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