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असत् निर्णायक शक्ति कुंठित हो जाती है उन्हें मोहनीय कर्म कहा जाता है। मोहनीय कर्म के दो भेद हैं- दर्शन-मोह और चारित्र मोह। 82 दर्शन मोह के पुनः तीन प्रकार हैंसम्यक्त्व - मोहनीय, मिथ्यात्व - मोहनीय और मिश्रमोहनीया 83 चारित्र मोहनीय के कषाय मोहनीय और नो कषाय मोहनीय दो विभाग हैं 84 कषाय मोहनीय के मूलत: चार प्रकार हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ। प्रत्येक के पुन: चार - चार प्रकार हैं। 85 इस प्रकार कुल 16 प्रकार हो जाते हैं।
___ नो कषाय क्रोधादि कषायों के उत्तेजक हैं। उनके उपजीवी हैं। कषायों के सहचर होने से इन्हें नो कषाय कहा जाता है। नो कषाय के 9 प्रकार हैं- 1. हास्य, 2. रति, 3. अरति, 4. भय, 5. शोक, 6. जुगुप्सा, 7. स्त्रीवेद, 8. पुरूषवेद, 9.नपुंसकवेद। संक्षेप में मोहनीय कर्म के भेद - प्रभेद निम्नानुसार हैं
मोहनीय कर्म
दर्शन मोहनीय चारित्र मोहनीय सम्यक्त्व मोह मिथ्यात्व मोह मिश्र मोह कषाय मोह नो कषाय मोह
अनन्तानुबंधी अप्रत्याख्यानी प्रत्याख्यानी संज्वलन
क्रोध मान माया लोभ क्रोध मान माया लोभ क्रोध मान माया लोभ क्रोध मान माया लोभ
हास्य रति अरति भय शोक जुगुप्सा स्त्रीवेद पुरूषवेद नपुंसकवेद 5. आयुष्य
___ यह जीव को किसी जन्म विशेष में नियत समय तक बनाये रखता है। घड़ी में मर्यादित काल के लिये चाबी भरी रहती है। मर्यादा पूर्ण होने पर घड़ी की गति बंद हो जाती है। उसी प्रकार मनुष्य, तिर्यञ्च आदि योनियों में नियतकाल तक जीव की अवस्थिति रहती है। वह अवधि पूर्ण होने पर मृत्यु हो जाती है और नया जन्म होता है। आयुष्य कर्म के कारण ही जन्म - मरण का चक्र चलता रहता है। यह कर्म कारागार, कैद या खोड़े के समान है। जिस प्रकार खोड़े में दिया गया व्यक्ति नियत समय से पहले कारागार से मुक्त नहीं हो सकता उसी प्रकार इस आयुकर्म के कारण जीव निश्चित समय तक एक शरीर से बंधा रहता हैं।
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया