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1. उपशम के पथ से चलने वाला साधक पुनः नीचे आ जाता है। 2. क्षयोपशम उदात्तीकरण की पद्धति है। 3. क्षयीकरण में आवेगों का पूर्ण क्षय हो जाता है।
कर्म बांधने में जैसे क्रिया वीर्य की अपेक्षा रहती है, कर्म काटने में भी क्रिया वीर्य की आवश्यकता होती है। निर्वाण के समय केवली के मन, वचन और शरीरजनित योगों का संपूर्ण निरोध हो जाता है। संपूर्ण क्रिया का अवरोध ही अकर्म की अवस्था अथवा मोक्ष है।
इस प्रकार प्रस्तुत शोध-प्रबंध में क्रिया-सम्बंधी प्राचीन अवधारणाओं को नवीन संदों में देखने के साथ प्रयत्न किया गया शरीर-विज्ञान और मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी पुनश्चिंतन और अनुसंधान की नूतन संभावनाओं को उजागर करने का प्रयास किया गया है।
उपसंहार
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