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की रफ्तार से अनवरत गणना करे तो उस बूंद के समस्त परमाणुओं की संख्या को समाप्त करने में 4 महीने लग सकते हैं। 33 विज्ञान के नवीन अन्वेषणों से हाइड्रोजन के परमाणु की रचना पर विचार किया गया है। उसका व्यास 1 / 200,000,000 इंच अर्थात् 1 इंच का करोडवा अंश है। उसका समूचा भार 164/100,000,000,000,000, 000,000,000,0 ग्राम हैं। हाइड्रोजन परमाणु के ऋणाणु और धनाणु का स्वरूप भी इसी प्रकार है - ऋणाणु (इलेक्ट्रोन) व्यास् 1 / 500,000,000,000,0 इंच अर्थात् इंच का 50 खरब वां भाग है। भार - हाईड्रोजन परमाणु का 1/2000 वां । धनाणु का व्यास-लगभग ऋणाणु से दस गुना अधिक भार 1/64100, 000,000,000, 000,000,000,000,0 ग्राम है। 34
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रस
पुद्गल का रस परिणमन पांच प्रकार का है - तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल और 35 जीभ पर करीब 9 हजार स्वाद कलिकाएं होती है। अवस्था बढ़ने के साथ उनकी संख्या कम हो जाती है। मुंह में वस्तु रखते ही सभी कलिकाएं एक साथ प्रभावित नहीं होती। उनकी अपनी अलग व्यवस्था है। मीठे का अनुभव जीभ के अग्रभाग पर स्थित कलिकाओं से होता है। कड़वे का पिछले भाग से। खट्टे का अनुभव जीभ के दोनों पाश्वर्वर्ती कलिकाओं से अनुभव होता है। नमकीन का स्वाद सभी कलिकाओं से सम्बन्धित है। स्वाद की प्रक्रिया बड़ी जटिल है। इन संवेदनाओं का कोई निश्चित नियम नहीं। कभी-कभी उनमें परिवर्तन भी देखा जाता है। एक स्थान से अनेक एवं अनेक स्थानों से एक स्वाद का भी ग्रहण होता है।
वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को मान्य किया है कि इन्द्रिय-विषयों का परस्पर गहरा सम्बन्ध है। स्वाद भी इसका अपवाद नहीं। स्वाद में ध्वनि, ताप, रूप, रंग, गंध, स्पर्श आदि के संवेदन का पूरा योग है। परिपार्श्व में तीव्र कोलाहल, रोने- चीखने की आवाज या अधिक शोर की आवाज हो तो स्वाद में अन्तर आ जाता है। विश्व में असंख्य प्रकार रस हैं। जैन दर्शन में मूल रसों के रूप में पांच को मान्यता देकर असंख्य प्रकारों का पांच में समावेश किया गया हैं।
गंध
जैन दर्शन में गंध को वर्ण के समान ही पुद्गल का परिणमन माना है। वर्ण की तरह गंध का भी रूपान्तरण संभव है। वैज्ञानिक जगत् में कोलतार जैसी वस्तु से सुगंध के
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
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