Book Title: Ahimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Author(s): Gaveshnashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 450
________________ इलाज करते है जिनका दवा से उपचार संभव नहीं है। अपनी इस चिकित्सा पद्धति को वे क्वांटम चिकित्सा कहते है। 82 जैन दर्शन के अनुसार शुभ भाव कर्म परमाणुओं को आकर्षित करते हैं। उमास्वाति तत्त्वार्थसूत्र में कर्म-प्रभाव को प्रकट करने वाले कई सूत्रों का उल्लेख किया है। 8 3 प्राणी मात्र के प्रति करुणा, त्यागी - व्रतीजनों की सेवा, दान-पुण्य, आत्म-नियंत्रण, क्षमा, शुचिता आदि क्रियाएं सातवेदनीय कर्म का आश्रवण है। ऐसा करने से स्वास्थ्य, शारीरिक सुख और मानसिक शांति के अनुकूल पारिस्थितिक योग मिलता है। 84 हम कर्म-रजों को उपकरणों में आबद्ध नहीं कर सकते है । प्रयोगकर्ता की भावना के अनुसार वे प्रभावित अवश्य होती हैं। वैज्ञानिकों ने यह मान्य किया है कि भावनाएं प्रभावित करती है। भावना का प्रभाव यंत्रों पर भी पड़ता है। इस तथ्य का 'द गास्ट इन द एटम्' नामक पुस्तक में विस्तार से वर्णन किया गया है। इसमें कर्म-परमाणुओं का जिक्र नहीं है किन्तु प्रयोग कर्ता की भावना का क्या प्रभाव होता है, इसका विवेचन कर क्वान्टम यांत्रिकी एवं कार्य-कारण के सिद्धांत को समझने का प्रयास किया गया है। 85 - इन घटनाओं के पढ़ने पर संवेगों के शरीर पर होने वाले प्रभाव में किसी प्रकार की आशंका का अवकाश नहीं रह जाता है। शरीर, वाणी और मन क्रियान्विति के साधन हैं। इनमें शरीर प्रवृत्तियों का सबसे बड़ा स्रोत है। दूसरा स्रोत वाणी है। किन्तु वाणी की प्रवृत्ति निरन्तर नहीं होती है। बोलने पर वाणी की प्रवृत्ति होती है। तीसरा प्रवृत्ति का प्रमुख स्रोत मन है। वैदिक परम्परा में यह आम धारणा है कि मन तीनों में प्रमुख है। बंधन और मुक्ति का कारण मन ही है | 86 मैत्राण्युपनिषद् एवं तेजोबिन्दूपनिषद् में भी कहा गया कि मनुष्य के बंधन और मुक्ति का कारण मन है। 87 जैन दर्शन की मान्यता इससे भिन्न है। वाणी और शरीर का सहयोग मन निरपेक्ष स्थिति में कुछ करने के लिये समर्थ नहीं है। इन दोनों में भी शरीर की भूमिका प्रमुख है, शरीर के बिना मन के पुद्गलों का ग्रहण भी संभव नहीं। बुद्ध ने हिंसा आदि के साधन (दण्ड) के रूप में एक मन को ही मुख्यता दी है। वाणी और काया को दण्ड नहीं माना। भगवान महावीर को एक दण्ड की धारणा स्वीकार्य नहीं थीं। उन्होंनें दण्ड के तीन प्रकार बताए हैं- मनोदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड । उनके अनुसार वाणी और काया का महत्त्व मन से कम नहीं। अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या: क्रिया 390

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