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संवेग और शरीर का सम्बन्ध
1. निरन्तर चिन्ता एवं अत्यधिक दिमागी श्रम से शरीर थक जाता है।
2. उदासीनता से पाचन शक्ति मन्द हो जाती है।
3. क्रोध से रक्त विषाक्त बन जाता है, स्वभाव में चिड़चिड़ापन, शरीर में कंपन, रक्तचाप वृद्धि, नसों में तनाव, यूरिन अधिक, पेट में जलन आदि होती हैं। 4. ईर्ष्या से अल्सर की संभावना बनती है।
5. घृणा से अरुचि, जीवन से विरक्ति, अति रोना, भूख का कम होना आत्महत्या, आदि होते हैं।
6. भय से हृदय की धड़कन तेज, घबराहट, मुंह सूखना, भूख बंद, नींद नहीं आना आदि होते हैं।
7. काम से कई ग्रंथियों का स्राव, चंचलता बढ़ जाती है, विवेक कम होता है।. 8. बुरे भावों से अतिसार हो जाता है।
अनेक रोगों को आज वैज्ञानिक मनोदैहिक (साइकोसोमेटिक) मानते हैं।
मार्मन विन्सेन्ट पील अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'द पावर ऑफ पोजीटिव थिंकिंग, में 'उद्धृत करते हैं कि जोड़ों एवं मांस पेशियों का दर्द किसी निकटवर्ती व्यक्ति के प्रति आन्तरिक आक्रोश के कारण होता है। 80
लुई ने 'यू केन हील योर लाइफ' पुस्तक में अपने अनुभवों का संकलन किया है। उनके अनुसार- 'लम्बे समय तक चलने वाली उदासीनता कैंसर का हेतु बन जाती है। आलोचना की स्थायी वृत्ति जोड़ों का दर्द पैदा करती है। भय और तनाव से गंजापन, अल्सर आदि की संभावना बढ़ जाती है। शुभ विचार, भावना, क्रियाओं का उपयोग चिकित्सा में करके लुई हे ने स्वयं अपना कैंसर रोग ठीक किया एवं आज स्वयं अमेरिका में सब प्रकार की बीमारियों का उपचार कर रही है। 8 1
दीपक चौपड़ा का अभिमत है कि दवा के कण, श्वास, वायु के कण, भोजन के कण, अच्छे विचार, अच्छी क्रिया, अच्छी प्रवृतियों के माध्यम से हम बीमारियों को ठीक कर सकते हैं। दवा की तुलना में मरीज के ठीक होने में वे मनुष्य के सद्विचारों को महत्त्वपूर्ण भूमिका मानते हैं। अमेरिका में शुभ विचारों के प्रभाव से ऐसी बीमारियों का क्रिया और मनोविज्ञान
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