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ही द्रव्यमन है। भाव मन का स्थान आत्मा ही है। आत्मा के शरीर व्यापी होने से भावमन भी शरीर व्यापी है।17 मन का कारण और परिमाण
इस संदर्भ में मुख्यत: तीन दार्शनिक विचारधाराएं हैं
(1) परमाणु रूप- न्याय, वैशेषिक एवं मीमांसक मत से मन परमाणु रूप तथा नित्य है।
(2) अणु रूप- सांख्य, योग एवं वेदान्त की धारणा में मन का परिमाण अणु जितना है। वह जड़ है अत: सांख्य और योग उसे प्राकृतिक विकार मानते हैं। वेदान्त में मन का उत्पत्ति स्थान माया या अविद्या है।
(3) मध्यम परिमाण- जैन व बौद्ध चिन्तन के अनुसार मन मध्यम परिमाण या देह परिमाण है। बौद्ध परम्परा में मन विज्ञान रूप है। अत: चेतन है। पूर्ववर्ती विज्ञान उसका कारण है और पश्चात्वर्ती विज्ञान का वह कार्य है। जैन दर्शन की मन के बारे में अनेकान्तिक दृष्टि है। उसके अनुसार मन चेतन एवं अचेतन की संयुक्त परिणति है। क्र. दर्शन स्वरूप परिमाण स्थान 1. न्याय नित्य परमाणु
हृदय 2. वैशेषिक नित्य परमाणु
हृदय 3. मीमांसक नित्य परमाणु हृदय 4. सांख्य अनित्य
सूक्ष्म शरीर (स्थूल शरीर) 5. योग अनित्य अणु सूक्ष्म शरीर (स्थूल शरीर) 6. वेदान्त अनित्य अणु
हृदय 7. बौद्ध क्षणिक मध्यम परिमाण हृदय 8. जैन परिणामी नित्य मध्यम परिमाण हृदय मन का स्वरूप और भौतिकवाद
भौतिकवादी विचारधारा के अनुसार मन का स्वरूप निम्नानुसार है(1) समता मूलक भौतिकवाद के अनुसार मानसिक क्रियाएं स्वभाव से ही
भौतिक हैं।
अणु
क्रिया और मनोविज्ञान
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