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( 1 ) औदारिक शरीर
है
उदार शब्द से उक् प्रत्यय करने पर औदारिक शब्द निष्पन्न होता है। इसका अर्थ - स्थूला । औदारिक शरीर को औदारिक कहने के सन्दर्भ में अनुयोगद्वार की हारिभद्रया वृत्ति में चार हेतु बतलाये हैं
(1) उदार अर्थात् प्रधान । शरीरों में औदारिक शरीर प्रधान है; क्योंकि तीर्थकर एवं गणधर भी इसे धारण करते हैं। 3
(2) उराल अर्थात् विशाल । औदारिक शरीर से अन्य कोई शरीर अवगाहना की दृष्टि से बड़ा नहीं हो सकता। 4
( 3 ) उरल- जो आकार में बड़ा और प्रदेश - उपचय में अल्प होता है उसे उरल कहा जाता है। औदारिक शरीर आकार में बड़ा है किन्तु प्रदेशोपचय अल्प होने से औदारिक कहा जाता है । '
(4) उरालिय- जो मांस, अस्थि, स्नायु आदि अवयवों से निर्मित होता है, वह औदारिक है।"
औदारिक शरीर स्थूल पुद्गलों से निर्मित है। यह रस आदि सप्त धातुमय है। इसमें चयापचय की क्रिया निरन्तर होती रहती है। इसका छेदन-भेदन संभव है। यह मृत्यु के बाद भी अवस्थित रहता है। देव और नारक के अतिरिक्त सभी जीवों को यह शरीर प्राप्त है। देवता और नारक को छोड़कर गर्भज और सम्मूर्च्छन सभी प्राणियों में औदारिक शरीर ही पाया जाता है।
(2) वैक्रिय शरीर
अनेक प्रकार के रूप बनाने में समर्थ शरीर वैक्रिय कहलाता है। वैक्रिय अर्थात् विक्रिया । विभिन्न प्रकार की क्रियाएं जिसमें घटित हो सकती है, वह वैक्रिय शरीर है। विक्रिया, विकार, विकृति और विकरण - ये सभी एक ही अर्थ के द्योतक हैं।'
वैक्रिय शरीर में विशिष्ट प्रकार की शक्ति होने के कारण वैक्रिय शरीरधारी प्राणी छोटा-बड़ा, सुरूप- कुरूप, एक-अनेक, रूप बना सकता है। यह रक्त आदि धातुओं से निर्मित नहीं होता है, मृत्यु के बाद पारे की तरह बिखर जाता है।
देवता और नारकी में वैक्रिय शरीर जन्म से प्राप्त है। मनुष्य एवं तिर्यञ्चों में लब्धिजन्य ता है। वायुकाय में भी वैक्रिय शरीर पाया जाता है। ' दिगम्बर परम्परा में तैजस्काय आदि में भी वैक्रिय शरीर माना है।
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया