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दोनों प्रकार के दबावों का अन्तर तनुपट एवं अन्य मांस-पेशियों की क्रिया से उत्पन्न किया जाता है। श्वसन क्रिया में मुख्य रूप से तीन अवयव संभागी हैं।
(1) तनुपट (2) अन्तरापर्युक (पंसलियों से संपृक्त पेशीसमूह)
(3) हंसली की मांसपेशियां . श्वास की क्रिया में इन तीनों का योगदान है। तनुपट के संकुचन से छाती का विस्तार 400 घन सेन्टीमीटर जितना बढ़ जाता है। यदि श्वास लम्बा या गहरा हो तो तनुपट को 1.5 सेंटीमीटर तक नीचे खिसकाया जा सकता है। तनुपट वक्षीय गुहा एवं उदर गुहा के बीच में स्थित रहता है। छाती के संकोच और विस्तार के साथ इसका भी संकोच-विस्तार सहज होता है। नाक श्वसन तंत्र का प्रवेश द्वार है। नथुनों में छोटे - बड़े बाल रक्षा पंक्तियां है, जो भीतर प्रवेश करने वाली हवा के अनावश्यक कणों को आगे बढ़ने से रोक देती है। नाक की गुहा में स्थित श्लेष्म-झिल्ली हवा को आई और गर्म बनाती है और सूक्ष्म कण या कीटाणुओं को भी रोकती है। ग्रसनी मुंह एवं कंठ के साथ सम्बन्ध रखती है। श्वास-प्रणाल कंठ के नीचे से प्रारंभ होकर छाती तक पहुंचती है। यह 11 सेंटीमीटर लम्बी होती है।
श्वास निरन्तर चलनेवाली अनैच्छिक क्रिया है। सामान्यत: व्यक्ति एक मिनट में लगभग 14 से 20 श्वासोच्छ्वास लेता है। किन्तु तापमान की न्युनाधिकता, दर्द, भावनात्मक प्रेरणा, वय आदि कुछ ऐसे कारण है, जिनमें श्वास की सामान्य गति में परिवर्तन हो जाता है।
श्वास के द्वारा प्राणवायु फुफ्फुस तक पहुंचती है। रक्त वाहिनियां, शिराएं और धमनियां फेफड़ों से जुड़ी हुई है। वे प्राणवायु को ग्रहण कर लेती है और कार्बन डायोक्साईड छोड़ देती है। यह विनिमय कार्य सतत् चालू रहता है।
सामान्य श्वसन-क्रिया के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रतिवर्त सहज क्रियाओं के दौरान हमारे श्वसन-पथों का उपयोग होता है। खांसना और छींकना-ये दोनों रक्षणात्मक प्रतिवर्त-सहज क्रियाएं हैं, जिनसे श्वसन-पथों की सफाई होती हैं।
पाचनतंत्र- यह शरीर का रासायनिक तंत्र है।55(घ) शरीर के लिये आवश्यक पोषक द्रव्यों का उत्पादन यहीं होता है। इस निर्माण में जिस ऊर्जा की खपत होती है, उसकी आपूर्ति के लिये भोजन आवश्यक है।
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया