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भोजन की पाचन क्रिया जिस अवयव से होती है, उसे भोजन - प्रणाली कहते हैं। इसका प्रथम प्रवेश द्वार है - मुंह। मुंह एक प्रकार की गुहा हैं। जीभ, दांत, लार-ग्रंथियां तीनों उसमें मददगार हैं। दांत भोजन को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित कर पीसते है। लार-ग्रंथियां लार-रस भोजन में मिलाकर भोजन की रासायनिक क्रिया एवं पाचन में योगदान देती है।
__ भोजन जब अन्ननली के माध्यम से आमाशय में जाता है, वहां तक पहुंचने में अन्ननली के संकुचन और विस्तरण की क्रिया होती है। आमाशय में पेप्सिन और रेनीन जैसे पाचक रस भोजन में मिलते हैं। रेनीन दूध को जमाकर उसके ठोस भाग को अलग करता है। पेप्सिन प्रोटीन के पाचन में क्रिया करता है। आमाशयिक रस का उत्पादन सतत् होता रहता है चाहे आमाशय खाली हो या भरा हुआ।
आमाशय की आकृति बड़े खोखले थैले की तरह है इसकी लम्बाई करीब 22 सेण्टीमीटर होती है। उसमें भोजन भरने की क्षमता 1.5 से 2 लीटर तक मानी जाती है। तीन से पांच घण्टों तक भोजन उसमें पड़ा रहता है। उसके बाद अर्धप्रवाही पक्वाशय में चला जाता है।
छोटी आंत- छोटी आंत भोजन प्रणाली का चौथा अवस्थान है। वह 7 मीटर लम्बी है। प्रारंभ का 9 इंच जितना भाग पक्वाशय कहलाता है। पक्वाशय के बाद 7 से 8 फुट लम्बा भाग मध्यांत्र है और 15 से 16 फुट लम्बे विभाग को शेषांत्र कहते हैं। पाचन क्रिया में पक्वाशय का अत्यधिक महत्त्व है।56(क)
___ मध्यांत्र छोटी आंत का 2/5 वां भाग है, इससे अधिक भाग शेषांत्र का है। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा का जेजूनम और इलियम से गुजरते समय शोषण हो जाता है। लवण, खनिज, केल्सियम, पोटेशियम, सोडियम, लोहा, फास्फोरस, आयोडीन, विटामिन आदि मुख्य तत्त्व भोजन से प्राप्त होते हैं। विटामिन का शोषण सामान्यतः छोटी आंत द्वारा होता है तथा लवण और पानी का शोषण बड़ी आंत में।
बड़ी आंत- छोटी आंत में आहार का सार तत्त्व कोशिकाओं द्वारा शोषित हो जाता है, अवशिष्ट है वह बड़ी आंतं में जाता है। बड़ी आंत सर्वोत्तम गटर व्यवस्था है। अपशिष्ट में 60% पानी और क्षार तत्त्व होते हैं। बड़ी आंत का कार्य पानी एवं लवण का शोषण तथा मल का विसर्जन करना है। बड़ी आंत का प्रथम भाग ऊर्ध्वगामी कहलाता है। अन्त का भाग मलाशय है, जहां से मल का विसर्जन होता है। मल विसर्जन की क्रिया में विलम्ब हो जाये तो मलाशय की दीवार मल में उपस्थित पानी एवं अन्य तरलांश का क्रिया और शरीर - विज्ञान
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