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चयापचय क्रिया - शरीर में चयापचय की क्रिया भी निरन्तर चलती है। इनका स्वरूप भी निम्नानुसार ज्ञातव्य है
अपचयात्मक अभिक्रियाएं- इन क्रियाओं के दौरान कोशिकाओं में प्रविष्ट सूक्ष्म द्रव्यों को सूक्ष्मतर तत्त्वों में विभाजित किया जाता है अथवा उनके ऑक्सीकरण के द्वारा उनमें संग्रहित रासायनिक ऊर्जा को मुक्त किया जाता है।
चयात्मक अभिक्रियाएं- इन क्रियाओं में कोशिकाओं के भीतर प्रविष्ट सूक्ष्म द्रव्यों का संश्लेषण कर शरीर के मूलभूत रसायनों का निर्माण किया जाता है। कोशिकाओं में ये दोनों विश्लेषणात्मक एवं संश्लेषात्मक अभिक्रियाओं की समग्रता ही 'चयापचय' है। चयापचय क्रिया की तुलना मोटर से कर सकते हैं। मोटर पेट्रोल से चलती है। पेट्रोल ऊर्जा उत्पादन करता है। मोटर की गति में ऊर्जा का व्यय होता है किन्तु साइलेन्सर के धुआं उगलने पर अपेक्षाकृत शक्ति का अधिक व्यय होता है । चयापचय की यही स्थिति है। यह क्रिया बड़ी जटिल है। कुछ ग्रंथियां जैसे- स्वेद - ग्रंथि, लार ग्रंथि आदि जिन स्रावों का उत्पादन करती है वे नलिकाओं के माध्यम से प्रवाहित होते हैं और उत्पादन - स्थान के निकटवर्ती स्थानों को प्रभावित करते हैं। ऐसी ग्रंथियों को बहिःस्राव ग्रंथि कहते हैं। यकृत, क्लोमग्रंथि, गुर्दे भी इसी प्रकार की ग्रंथियां हैं।
ग्रंथि का निर्माण विशेष प्रकार की कोशिकाओं के समूह से होता है। प्रत्येक ग्रंथि एक रासायनिक कारखाने के समान है जिनमें एक-एक कोशिका रासायनिक स्रावों के उत्पादन का कार्य करती है।
अन्तःस्रावी ग्रन्थि तंत्र और उसकी क्रियाएं
अन्तःस्रावी ग्रंथियां नलिकाविहीन होती हैं। उनके स्राव सीधे रक्त प्रवाह में छोड़े जाते हैं जो पूरे शरीर में प्रवाहित होते हैं। इन स्रावों का व्यक्ति की शारीरिक क्रियाओं, मनोदशाओं, व्यवहार, आचरणों पर प्रभाव पड़ता है। मुख्य अन्तःस्रावी ग्रंथियों का प्रेक्षाध्यान, हठयोग और शरीर विज्ञान की दृष्टि स्थान निम्नानुसार है— 56 (घ)
अन्तःस्रावी ग्रंथियां केन्द्र
पीनियल
ज्योतिकेन्द्र
पिच्युटरी
दर्शन केन्द्र
थाइराइड पैराथाइराइड विशुद्धि केन्द्र
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चक्र
सहस्रार चक्र
आज्ञा चक्र
विशुद्धि चक्र
स्थान
ललाट के मध्य
भृकुटियों के मध्य
कण्ठ
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया