Book Title: Ahimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Author(s): Gaveshnashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 411
________________ 3) थाइराईड : पेराथाइराईड-केल्सियम 3. चर्बी में वृद्धि,जड़ता,दांत की एवं फोस्फोरस का संतुलन और तकलीफ, दुर्बलता, पेशियों में शारीरिक विकास का दायित्व। आटे, चंचलता। 4) थायमस : 15 वर्ष की अवस्था तक 4. बीमारी, जड़ता आदि। रोगों से सुरक्षा। 5) एड्रीनल : पित्ताशय, लीवर, रक्त 5. भीरुता, कार्यशक्ति की कमी, पित्त, का परिभ्रमण, रक्तचाप और प्राणवायु एसीडिटी, सिरदर्द। का संतुलन, चारित्र निर्माण। 6) गोनाड्स : शरीर की गर्मी और प्रजनन 6. प्रजनन कार्य में क्षति, कम या अधिक के अनुरूप स्राव,संतुलन, आकर्षण मासिक, स्वप्न दोष, हस्तदोष, शक्ति पर नियमन। अनाकर्षकता,चर्बी में वृद्धि आदि इस प्रकार शरीर के नियमन एवं रक्षण में अन्त:स्रावी ग्रंथियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। योग की भाषा में इन्हें चक्र कहा जाता है तथा प्रेक्षाध्यान पद्धति में केन्द्र कहा जाता है। अन्तःस्रावी ग्रंथियों के स्राव शरीर और मन को कर्म की तरह ही प्रभावित करते हैं। ग्रंथियों के स्राव की खोज ने चिकित्सा जगत् में नई क्रांति पैदा की हैं। मानस-विश्लेषण और शारीरिक विकास की विद्या को नया आयाम दिया है। नाड़ी ग्रन्थि और उसके कार्य __ शरीर के मुख्य रूप से दो नियंत्रक तंत्र हैं-नाड़ी तंत्र और अन्त: स्रावी ग्रंथि तंत्र। दोनों तंत्रों के क्रिया-कलापों में विलक्षण सामञ्जस्य हैं। शरीर तंत्र का संचालन दोनों के संयोग से होता है। अन्तःस्रावी ग्रंथि-तंत्र अपने कार्यों का निष्पादन रासायनिक नियंत्रक स्रावों (हार्मोन) के माध्यम से करता है। इनके स्राव सीधे रक्त में मिलकर पूरे शरीर में प्रवाहित होते हैं। प्रत्येक ग्रंथि के स्राव हमारे शरीर और मन को प्रभावित करते हैं। जिससे शारीरिक और मानसिक परिवर्तन भी होते हैं। व्यक्ति की वृत्तियों का मूल स्रोत नाड़ी-ग्रंथि तंत्र (न्यूरो एण्डोक्राइन सिस्टम) है। आवेश और आवेग केवल कामनाओं को उत्पन्न ही नहीं करते बल्कि उनकी पूर्ति के लिये बाध्य भी करते हैं। व्यक्ति अपनी क्रियाओं को संतुलित इसलिये कर पाता क्रिया और शरीर - विज्ञान 351

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