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विज्ञान कहते हैं। शरीर क्रिया-विज्ञान को समझने के लिये शरीर रचना विज्ञान का ज्ञान भी अनिवार्य है।
मनुष्य का शरीर प्रकृति की एक विलक्षण चमत्कारिक कृति है। इसकी संरचना अत्यन्त जटिल बहुकोषीय संस्थान के रूप में है। उसके जीवित रहने का आधार भीतर में चलने वाली विभिन्न जैव-भौतिक एवं जैव-रासायनिक क्रियाओं का सम्यग् समायोजन है।
शरीर की संरचना सिमेंट, कंकरीट से बने भवन के समान है। यह अत्यन्त शक्तिशाली यंत्रों से सुसज्ज है। हृदय और फुफ्फुस निरन्तर कार्यरत पंप हैं। आंख आश्चर्यजनक कैमरा एवं प्रोजेक्टर है। कान अद्भुत ध्वनि व्यवस्था है। पेट रासायनिक लेबोरेटरी है। नाड़ीतंत्र संचार व्यवस्था है। मस्तिष्क कम्प्युटर है। विशेष बात यह है कि सभी यंत्र सहज रूप से एक दूसरे के सहयोग से क्रिया कर रहे हैं।
शरीर-विज्ञान की दृष्टि से शरीर करीब 600 खरब कोशिकाओं से निर्मित है। कोशिका शरीर की सबसे छोटी संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। जिसे जीव-अणु भी कहा जाता है। उसका सबसे बड़ा आकार एक पिन की टोपी से भी छोटा होता है। एक मिलीमीटर के शतांश जितने व्यास में एक महानगर की तरह सारे तंत्र है।
कोशिकाएं अत्यन्त सूक्ष्म होती हैं। उन्हें देखने के लिये सूक्ष्मदर्शी यंत्रों की अपेक्षा रहती है। छोटी से छोटी कोशिका की लम्बाई-चौड़ाई करीब 1/200 मिली मीटर और बड़ी से बड़ी 1/4 मि.मी. होती है। कोशिकाओं के आकार-प्रकार में भिन्नता होती है। कुछ कोशिकाएं वेलनाकार, कुछ शंखाकार तथा कुछ चपटी होती है।
कोशिका की मूल संरचना में सबसे बाहर आवरण झिल्ली के आकार का होता है, जिसे कोशिका-भीत्ति कहते हैं। उसके अन्दर गाढ़ा तरल पदार्थ होता है, जिसे जीवद्रव्य कहा जाता है। जीव द्रव्य को श्लाइडेन ने एक प्रकार का गोंद बताया है। दुजार्डिन ने इसका सार्कोड नाम दिया और कहा कि यह केवल प्राणियों में पाया जाता है। जे.ई.पार्किन्जे ने 1941 में सार्कोड को जीव द्रव्य नाम दिया।45
जीव द्रव्य कार्बनिक तथा अकार्बनिक यौगिकों का मिश्रण है तथा इसमें स्वयं की कुछ विशेषताएं पाई जाती हैं। ये विशेषताएं जीव द्रव्य के जैविक गुण कहलाते हैं तथा यही जीवधारियों के नियामक होते हैं। इनकी विशेषताएं निम्नांकित हैं
क्रिया और शरीर-विज्ञान
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