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होते हैं। दोनों कोषों के साथ जुड़ी हुई तंत्रिका तंतुओं की संख्या लगभग दस लाख हैं। जिनके माध्यम से दोनों नेत्रों के दाएं भागों में तंत्रिका आवेग प्रमस्तिष्क के दायें खण्ड में तथा बायें भागों के बाएं दृष्टि खण्ड में पहुंचते है और दृष्टि बोध होता है। मनुष्य की आंखें 3,40,000 रंगों को देखने की क्षमता रखती है। आंख के उपर्युक्त स्वरूप को निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है
नेत्र संरचना
नेत्रमणि कीकी
पारदर्शक पटल....
श्रीनिम
-दृष्टि पटल
-दृष्टि चेता
-शंक आकार का कोष सली आकार का कोष
शब्द संवेदन
शब्द ग्रहण का साधन कान है। वैज्ञानिक दृष्टि से कान के तीन विभाग है । 49 (1) बाह्य कान (2) मध्य कान ( 3 ) आन्तरिक कान ।
बाह्य कान
बाह्य कान में मुख्य कर्ण पल्लव, कर्णनली और कर्णपट्ट का समावेश है। बाह्य दृश्य कर्ण पल्लव श्रवण की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण काम नहीं करता। कर्ण पल्लव संपृक्त कर्णली की लम्बाई करीब 1 ईंच के बराबर है। उसमें से जो स्राव निकलता है, वह कर्णनली को स्निग्ध बनाये रखता है। कर्णनली के छोटे-छोटे बाल हानिकारक तत्त्वों को अंदर प्रवेश नहीं देते। कर्णनली के अन्तिम सिरे पर कर्णपटल है। जब ध्वनि तरंगें कर्णली से अंदर आकर कर्णपटह से टकराती है तब कर्णपटल प्रकंपित होता है।
मध्य कान
मध्य कान में अवस्थित तीन अस्थियां अन्तरकान के साथ जुड़ी है। ध्वनि प्रकंपन कर्णपटल को प्रकंपित करता है तब मध्यकर्ण में ध्वनि तरंगें अस्थि प्रवाह में बदल जाती है।
अन्तरकान
अन्तर कान की रचना विचित्र है । वह दो प्रकार की है- 1. कर्णावर्त्त नलिका 2. कर्ण शंख । कर्णावर्त्त लम्बी नलिका है जो आधार से चोटी तक क्रमशः पतली
क्रिया और शरीर - विज्ञान
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