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संवेदन के संग्राहक तंत्रिकाएं अन्तस्त्वचा में सर्वाधिक होती हैं। रासायिक उद्दीपकों से प्राप्त उत्तेजना जब ग्राहक कोशिकाओं द्वारा तंत्रिका तंतुओं में पहुंचती है और वे तांत्रिकी आवेग जब मस्तिष्क के पार्श्विक खण्ड में पहुंचते है तब त्वक् संवेदन की अनुभूति होती है।
त्वचा जन्य अनुभूति में त्वचा के केश कण जवाबदार है। इनका सम्बन्ध ज्ञान तंतुओं से है, उनके द्वारा अनुभवों को मस्तिष्क तक पहुंचाते हैं। स्वाद संवेदन
स्वाद का संवेदन जीभ से होता है किन्तु इसमें गले का अगला भाग, कंठ नली और तालु भी सहयोगी हैं। जीभ के ऊपरी सतह पर स्वाद कण होते हैं। खुराक के रासायनिक तत्त्वों से स्वादकण उत्तेजित होते हैं। उनके साथ जुड़े हुए ज्ञान तंतु संदर्भगत संदेशों को मस्तिष्क तक पहुंचाते हैं, तब स्वाद का बोध होता है। विज्ञान के आधार पर प्राथमिक स्वाद चार हैं-खट्टा, मीठा, नमकीन और कड़वा। जीभ के अग्र भाग मीठे एवं नमकीन, दोनों किनारे खट्टे तथा पिछला भाग कड़वे स्वाद के लिए विशेष संवेदन शील है। स्वाद कलिकाएं जिह्वा के गर्तों में पाई जाती है, जिन्हें रसांकुर भी कहते हैं। गन्ध संवेदन ____ गंध की संवेदना नाक के द्वारा होती है। घ्राणेन्द्रिय का सीधा सम्बन्ध प्रमस्तिष्क से है। मनुष्य में करीब 60,000 गंधों में भेद करने की क्षमता है। नाक के अंदर घ्राणतंत्रिका हैं। प्रत्येक तंत्रिका में लाखों सूक्ष्म-तंत्रिका अंतांग होता है। गंध तंत्रिका पर एक परत है जिसे म्युकष मेम्ब्रेन्स कहा जाता है। जब हवा द्वारा अत्यन्त सूक्ष्म रासायनिक तत्त्व नाक में प्रविष्ट होते हैं, तब श्लेष्म परत में ही हुई श्लेष्म ग्रंथियों से स्राव होता है। यह स्राव गंध तंत्रिका के ज्ञान तंतुओं को उत्तेजित करता है, जिससे गंध का अनुभव
होता है।
दृश्य संवेदन
नेत्रपट के ज्ञानतंतु दो प्रकार के हैं प्रथम प्रकार के संग्रहक सली आकार की पतली और लम्बी कोशिकाएं हैं जो मंद और साध्य प्रकाश में कार्य करती है। दूसरी, शंकु आकार में छोटी मोटी कोशिकाएं जो दिन के तेज प्रकाश में काम करती है।
मनुष्य के नेत्र में लगभग बारह करोड़ सली और करीब पच्चास लाख शंकु कोश
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया