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घटक प्राप्त कर उन्हें वाञ्छित रूप से मिश्रित करके अनेक उच्चस्तरीय सुगंध बनाने में सफलता प्राप्त की गई है।
प्रत्येक पौद्गलिक पदार्थ में गंध अवश्य पाई जाती है। पृथ्वी, जल, हवा, वनस्पति आदि में भी गंध पाई जाती है। अग्नि की गंध नासिका द्वारा भले ग्राह्य न हो किन्तु गंध वाहक यंत्र का आविष्कार हुआ है जो गंध को लक्ष्य भी करता है और प्रेषित भी। यह यंत्र नासिका की अपेक्षा अधिक संवेदनशील है।
वर्ण
वर्ण भी पदार्थ का गुण हैं। वर्ण पांच हैं - कृष्ण, नील, रक्त, पीत, श्वेता वैज्ञानिकों ने इन्हें प्रयोगों से सिद्ध किया है कि किसी पदार्थ को गर्म करने से उसका तापमान बढ़ता जाता है। सबसे प्रथम वह वस्तु ताप विकिरण करती है तो 500 तक इसका रूप नहीं होता इसलिये वह काली ही दिखाई देती है। उसके बाद कुछ परिवर्तन होता है 700 पर लाल,12000 पर पीला और 1500 पर सफेद रंग की बन जाती है। अधिक तापमान से अन्त में नीला रंग प्राप्त होता है। तात्पर्य की भाषा में पांचों वर्ण ऐसे प्राकृतिक वर्ण है जो किसी भी पुद्गल से विभिन्न तापमानों पर आर्विभूत हो सकते हैं। इसलिये इन्हें पुद्गल का मूल गुण माना गया है। 1859 में वैज्ञानिक किरचोय ने वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) के विश्लेषण की खोज की। शोध का निष्कर्ष यह है कि किसी पदार्थ से निकलने वाला या उसके द्वारा ग्रहण किया जानेवाला वर्णक्रम उस पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है।36
जैन दर्शन के अनुसार वर्ण के अनन्त भेद-प्रभेद हैं। एक वर्ण में भी न्युनाधिकता के आधार पर अनेक प्रकार हो जाते हैं। आधुनिक विज्ञान ने दस लाख वर्ण खोजे हैं तथा सौरवर्ण पटल के वर्षों का तरंग प्रमाणों की विभिन्न अवस्थितियों की दृष्टि से चिंतन करें तो तरंगें अनन्त हैं और वर्ण भी अनन्त हैं। क्योंकि यदि प्रकाश तरंग प्रमाण में दूसरी प्रकाश तरंग से अनन्तवें भाग हीनाधिक हो तो वे दो असमान वर्णों की द्योतक होगी। इस प्रकाश वर्गों की संख्या अनन्त हो जाती है। जितने पर्याय उतने वर्णी शब्द
एक स्कंध के साथ दूसरे स्कंध के टकराने या स्कन्ध के टूटने से उत्पन्न ध्वनि रूप परिणाम शब्द है।37 उदाहरणार्थ कमरे या खिड़की के दरवाजे बंद करते है तो आवाज होती है। दो कपाटों का परस्पर संघात होता है। इसी प्रकार दरवाजे एक दूसरे से अलग होते है, तब भी आवाज होती है। जब भी दो वस्तुओं का संघात या भेद होता है, शब्द क्रिया और परिणमन का सिद्धांत
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