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आधुनिक विज्ञान भी इस तथ्य का समर्थक प्रतीत होता है। उसमें भी ध्वनि का मूल रूप और परिवर्तित रूप माना गया है। मूल रूप में ध्वनि वस्तु, व्यक्ति, वाद्य आदि से जिस रूप में निकलती है, उसी रूप में चारों और फैल जाती है। इसकी प्रसारण गति 1100 मील प्रति घंटा है। आगे चलकर वह ध्वनि नष्ट हो जाती है। लेकिन मूल ध्वनि को जब रेडियो स्टेशन आदि पर यंत्रों द्वारा विद्युत तंरगों में रूपान्तरित कर दिया जाता है, तब उसकी गति में असाधारण वृद्धि हो जाती है वह प्रति सेकिण्ड 1,86000 मील अर्थात 3 लाख कि.मी. गति से ब्रह्माण्ड में प्रसरित हो जाती है।42 रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीग्राम, टेलीफोन, टेलीप्रिंटर, तार का तार, ग्रामोफोन और टेप-रिकार्डर प्रभृति अनेकानेक यंत्र हैं। इन सभी के अध्ययन से ज्ञात होता है कि ये सब शब्द की अद्भुत शक्ति और तीव्र गति के परिणाम हैं। यह भी कहा जा सकता है- ये सब शब्द की रूपान्तरित (भिन्नत्व) शक्ति के तीव्र गति का परिणाम है।
जंबद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार सुघोषा घंटा का शब्द बिना किसी तार की सहायता लिये असंख्य योजन पर रहे घण्टाओं में प्रतिध्वनित होता है। 43यह वर्णन वैज्ञानिक अनुसंधान से पूर्व का है। आधुनिक टेलीफोन की घण्टियों को इस संदर्भ में समझा जा सकता है। पुद्गल के परिणमन छाया, प्रकाश, अंधकार, उद्योत आदि भी पुद्गल के परिणमन माने जाते हैं। छाया
पुद्गलों का प्रतिबिम्ब रूप परिणमन छाया है। जैन दृष्टि से प्रत्येक इन्द्रिय गोचर भौतिक पदार्थ से प्रतिपल तदाकार प्रतिछाया प्रतिबिम्ब के रूप में निकलती रहती है। वह पदार्थ के चारों ओर आगे बढ़ने में जहां कहीं अवरोध या आवरण पैदा होता है, वहीं दृश्यमान हो जाती है। छाया अंधकार की कोटि का ही एक रूप है। यह प्रकाश का अभाव नहीं, पुद्गल का परिणमन विशेष है। प्रकाश पर आवरण पड़ने पर छाया उत्पन्न होती है। प्रकाश पथ पर अपारदर्शक वस्तुओं का आ जाना आवरण है। विज्ञान इसे ऊर्जा का रूपान्तरण मानता है। ऊर्जा ही छाया और वास्तविक एवं अवास्तविक प्रतिबिम्बों के रूप में परिलक्षित होती है। व्यक्तिकरण पट्टियों पर गणनायंत्र यदि चलाया जाये तो काली पट्टी में से भी विद्युत अणुओं का निकलना सिद्ध होता है। सारांश यह हैकाली पट्टी केवल प्रकाश का अभाव रूप नहीं हैं, उसमें भी ऊर्जा है। इसीलिये उसमें से विद्युत अणु निःसरित होते हैं। प्रकाश पथ में दर्पणों और अणुवीक्षों का आ जाना एक प्रकार का आवरण है।
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
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