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सकते हैं। इसके पश्चात् बदलना अनिवार्य है। यह काल सापेक्ष स्थिति है। यह असंख्यात समय से पूर्व किसी भी समय बदल सकता है किन्तु असंख्यात समय पश्चात् तो निश्चित ही बदलना है।
इसी प्रकार किसी क्षेत्र में अवस्थान रूप परिणमन की भी सीमा है। एक परमाणु या स्कंध जिस आकाश प्रदेश में है, किसी कारण से चलित हो तो पुनः उसी आकाश प्रदेश पर आने में जघन्य एक समय, उत्कृष्टतः अनन्तकाल भी बीत जाता है। परमाणु आकाश के एक प्रदेश में रहते हैं, स्कंध के लिये यह प्रतिबंध नहीं। वे एक, दो, संख्यात, असंख्यात प्रदेशों में भी रह सकते हैं।
वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि पुद्गल के गुण हैं। काला वर्ण एक गुण (Quality) है, उसका परिणमन भी अनन्त रूपों में हो सकता है। अनंत गुणा काला परमाणु एक गुणा काले रंग में तथा एक गुणा काला परमाणु अनंतगुण काले रंग में परिणत हो सकता है। इस प्रकार वर्ण से वर्णान्तर, गन्ध से गन्धान्तर, रस से रसान्तर, स्पर्श से स्पर्शान्तर होना सम्मत है।
संसारी जीवों में जो अवस्थाएं बनती है, वे पर्याय है। वे पौद्गलिक पर्यायें भी व्यवहार से जीव की पर्याय मानी जाती है। भारतीय दर्शन में सांख्य आदि परिणामवादी हैं। न्यायदर्शन को यह स्वीकार्य नहीं है। धर्म और धर्मों का अभेद जिसे मान्य है, वे परिणामवादी दर्शन है। पूर्व पर्याय का विनाश, उत्तर पर्याय का उत्पाद ही परिणामवाद है।13 परिणमन
परिणमन के दो प्रकार हैं -1. जीव परिणाम 2. अजीव परिणाम। परिणमन के आधारभूत द्रव्य जीव और अजीव दो ही होने से अन्य सभी प्रकार के परिणमन इन दो विभागों में समाहित हो जाते हैं। जीव परिणमन ___जीव परिणाम के दस प्रकार हैं- 1. गति, 2. इन्द्रिय, 3. कषाय, 4. लेश्या, 5. योग, 6. उपयोग, 7. ज्ञान, 8. दर्शन, 9. चारित्र, 10. वेद।
1.गति परिणाम- गति का अर्थ जीव का एक जन्म से दूसरे जन्म में जाना हैं। मृत्यु के पश्चात् चार स्थितियां संभव है - नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव। इन रूपों में उत्पन्न होना गति रूप परिणमन है।
क्रिया और परिणमन का सिद्धांत
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