________________
ये तीनों बंध पौद्गलिक हैं। इनमें बंध प्रत्ययिक प्रमुख है। तत्त्वार्थ भाष्य वृत्ति में विससा बंध को सादि एवं अनादि उभयरूप माना है। अनादि विस्रसा बंध में धर्म, अधर्म,
आकाश का उल्लेख है।26 सादि परिणमन में कार्य-कारण की संभावना रहती है। सादि विस्रसा परिणमन का कालमान भिन्न-भिन्न है
बन्ध
जघन्य उत्कृष्ट । 1. बंधन प्रत्ययिक एक समय असंख्यकाल 2. भाजन प्रत्ययिक अन्तर्मुहूर्त संख्येयकाल 3. परिणाम प्रत्ययिक एक समय छह मास
पुद्गल द्रव्य सक्रिय है। सक्रियता में संयुक्त-वियुक्त की क्रिया स्वाभाविक है। किसी भी क्रिया से नई उत्पत्ति नहीं, केवल पदार्थ का रूपान्तरण मात्र होता है। विज्ञान की दृष्टि से भी पदार्थ की मौलिकता कभी नष्ट नहीं होती, केवल रूपान्तरण होता है। जैसे - मोमबत्ती को जलाने पर कुछ कार्बन उसके नीचे मौलिक रूप में एकत्रित हो जाता है। कुछ वाष्प रूप में बदल कर हवा में चला जाता है। यदि कांच का पात्र उस पर रख दिया तो वाष्प में परिवर्तित कार्बन पुनः प्राप्त हो जाता है।
(2) गति- गमन रूप परिणमन गति परिणाम है। वह दो प्रकार का है-स्पृशद् गति परिणाम और अस्पृशद् गति परिणाम।
स्पृशद् गति-बीच में आने वाली दूसरी वस्तुओं का स्पर्श करते हुए जो गति होती है, उसे स्पृशद् गति कहलाते है। जैसे - जल पर प्रयत्नपूर्वक तिरछी फैकी हुई वस्तु बीच-बीच में जल का स्पर्श करती हुई गति करती है, यह उस वस्तु की स्पृशद् गति परिणाम है।
___ अस्पृशद् गति- आकाश प्रदेशों का स्पर्श न करते हुए गति का होना अस्पृशद् गति परिणाम है। जैसे- मुक्त जीवों की या परमाणुं की तीव्रतम गति। प्रकारान्तर से गति के अन्य दो भेद भी हैं- दीर्घगति परिणाम और ह्रस्वगति परिणाम। अति दूरवर्ती देश की प्राप्ति का कारणभूत जो परिणाम है, वह दीर्घ गति और निकटवर्ती देश की प्राप्ति का कारणभूत जो परिणाम है, वह ह्रस्वगति परिणाम है।
(3) संस्थान- आकृति : संस्थानम्। संस्थान का अर्थ आकृति है। पौद्गलिक रचना विशेष को संस्थान कहते हैं। यह भी पुद्गलों का आकार विशेष में परिणमन है।
292
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया