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द्रव्यों में सिर्फ स्वाभाविक परिणमन है। संसारस्थ जीवों तथा पुद्गलों में परिणमन के दोनों प्रकार देखे जा सकते है। जीव और पुद्गल के परिणमन में अन्तर यह है कि जीव का एक शुद्ध परिणमन होने पर पुन: अशुद्धता नहीं आती जबकि पुद्गल अपनी शुद्ध दशा परमाणु रूप में पहुंचकर भी पुन: अशुद्ध (स्कन्ध) दशा में चले जाते हैं। पुद्गल में चयापचय की क्रिया चलती रहती है। गति बनाम क्रिया ___आकाश प्रदेशों में जीव और पुद्गल का गमन रूप परिणाम गति कहलाती है। प्रकंपन, दोलन आदि गतिक्रिया के उदाहरण हैं। किन्तु गति के लिये क्रिया शब्द का व्यवहार भी होता है।
___ गति केवल देशान्तर रूप में ही नहीं रूपान्तरण, कंपन आदि रूपों में हो सकती है। भगवती में परमाणु की गति के प्रकारों का विश्लेषण है। एजन, व्येजन ये सब परमाणु की गति की विविध अवस्थाएं है। एजन से उदीरणा गति की सात अवस्थाएं हैं।
गौतम- भंते ! क्या परमाणु - पुद्गल एजन, व्येजन, चलन, स्पंदन, प्रकंपन, क्षोभ, उदीरणा करता है।
महावीर- गौतम ! परमाणु कभी एजन करता है, कभी व्येजन करता है, कभी चलायमान होता है, कभी स्पंदन करता है, कभी क्षुब्ध होता है, कभी गति में प्रेरित होता है आदि। यह शब्दावली इस तथ्य की सूचक है कि परमाणु की गति विविध आयामी है। यह गति सरल-कम्पन, सरल स्थानांतरण, जटिल-कम्पन, जटिल-स्थानांतरण, दोलन, प्रसारण, ग्रहण, घूर्णन, घर्षण, फिरकन (Spin) तथा तरंग-प्रसार आदि रूपों में हो सकती है। ये शब्द अन्य अनेक प्रकार की गति की संभावना के सूचक हैं। परिणमन की मर्यादा
आगम साहित्य में किसी भी परिणमन की एक समय और अधिकतम असंख्येय काल निर्दिष्ट है।12 न्यूनतम एवं अधिकतम काल सीमा के बीच जितना काल है, उतने विकल्प हो सकते हैं। परिणमन तीन स्तरों पर होता है -गुणधर्म, पर्याय और अवस्था। अवस्थागत परिणमन की अपनी मर्यादा है। उदाहरणार्थ - स्कंध और परमाणु प्रवाह की अपेक्षा अनादि, अपर्यवसित है। किन्तु अवस्था विशेष की दृष्टि से सादि-सपर्यवसित भी है। परमाणुओं से स्कंध, स्कंध से पुनः परमाणु दशा में पहुंच जाता है। परमाणु, परमाणु
और स्कंध, स्कंध रूप में कम से कम एक समय अधिकतम असंख्यात काल भी रह 286
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया