________________
परिणाम के आधार पर असंबुद्ध व्यक्ति का कर्म आश्रव है।
क्रिया-विशेष- असंयत व्यक्ति का समस्त क्रिया व्यापार- उठना-बैठना आदि आश्रव है।
उपचय-अपचय-इस आधार पर साम्परायिक क्रिया दीर्घकालिक और ईर्यापथिक क्रिया अल्पकालिक कर्म-बंध का हेतु है। आश्रव के प्रकार
तत्त्वार्थ सूत्र में आश्रव के दो प्रकार बतलाये हैं- ईर्यापथिक और साम्परायिका वाचक उमास्वाति के अभिमत से साम्परायिक आश्रव का आधार उनचालीस प्रकार की क्रियाएं हैं-पांच इन्द्रियां, चार कषाय, पांच अव्रत, पच्चीस क्रियाएं। कुछ आचार्यों ने तीन योगों को सम्मिलित कर आश्रव के बयांलीस भेद किये हैं। 1'समयसार में चार आश्रवों का उल्लेख है। वहां प्रमाद को अलग आश्रव नहीं माना है।18 प्रस्तुत प्रसंग में संक्षेप की दृष्टि से तत्त्वार्थसूत्रीय व्याख्या पहले करके तत्पश्चात् स्थानांग और समवायांग में वर्णित आश्रवों के प्रकार की चर्चा की जा रही है। ठाणांग एवं समवायांग20 के आधार पर आश्रव पांच हैं- 1. मिथ्यात्व, 2. अविरति, 3. प्रमाद, 4. कषाय एवं 5. योग।
___ उमास्वाति ने 'मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगाः बंधहेतवः। 21 कहकर स्थानांगगत पांच आश्रवों की परम्परा का ही समर्थन किया है।
आश्रव के बीस भेदों की परम्परा भी प्रसिद्ध है किन्तु बीस नामों का किसी एक स्थान पर व्यवस्थित उल्लेख नहीं मिलता। पच्चीस बोल (थोकड़ा) के अन्तर्गत बीस भेदों का उल्लेख निम्नानुसार है1. मिथ्यात्वआश्रव
11. श्रोत्रेन्द्रिय आश्रव 2. अविरत आश्रव
12. चक्षुरिन्द्रिय आश्रव 3. प्रमाद आश्रव
13. घ्राणेन्द्रिय आश्रव कषाय आश्रव
14. रसनेन्द्रिय आश्रव 5. योग आश्रव
15. स्पर्शनेन्द्रिय आश्रव 6. प्राणातिपात आश्रव 16. मन आश्रव 7. मृषावाद आश्रव
17. वचन आश्रव 8. अदत्तादान आश्रव
18. काया आश्रव 9. मैथुन आश्रव
19. भण्डोपकरण आश्रव 10. परिग्रह आश्रव
20. शुचिकुशाग्र मात्र दोष आश्रव क्रिया और अन्तक्रिया
229