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1. विश्व में जितने सत् हैं उतने ही रहेगें। न कोई नया उत्पन्न होता है और न किसी
का आत्यन्तिक विनाश। 2. कोई भी द्रव्य परिवर्तन के नियम का अतिक्रमण नहीं कर सकता। 3. किसी भी द्रव्य का द्रव्यान्तर में परिणमन नहीं होता। जैसे - चेतन अचेतन
में और अचेतन चेतन में परिणत नहीं हो सकता। 4. पुद्गल परमाणु दो या दो से अधिक संयुक्त होकर स्कंध की रचना करते हैं।
5. सामग्री के अनुरूप ही द्रव्य की परिणति निश्चित है। विज्ञान में परिणमन का सिद्धांत इस संदर्भ में प्रसिद्ध विचारक कर्नल इंगर सोल का अभिमत मननीय है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'स्वतंत्र चिन्तन' में पदार्थ के संदर्भ में एक सिद्धांत प्रतिपादित किया है उनके अनुसार पदार्थ के चार आधारस्तंभ हैं- 6
1. पदार्थ का स्वरूप कभी नष्ट नहीं हो सकता। 2. गति और शक्ति का विनाश नहीं होता।
3. पदार्थ और गति पथक नहीं है। बिना गति के पदार्थ का अस्तित्व नहीं और पदार्थ के अभाव में गति नहीं है।
4. जिसका नाश नहीं, वह कभी पैदा नहीं हुआ और न होगा। जो अविनाशी है, वह अनुत्पन्न है। तात्पर्य यह है कि पदार्थ और गति के साहचर्य में कहीं भी संदेह का अवकाश नहीं है।
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तक 'वैज्ञानिक भौतिकवाद' में भौतिकवाद के आधुनिकतम स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए लिखा है - 'जगत का प्रत्येक परिवर्तन जिन सीढ़ियों से गुजरता है, उन सीढ़ियों को वैज्ञानिक भौतिकवाद में त्रिपुटी की संज्ञा दी गई है। वह त्रिपुटी है- 1.विरोधी समागम, 2. गुणात्मक परिवर्तन, 3.प्रतिषेध का प्रतिषेध।
वस्तु के गर्भ में अनेक विरोधी शक्तियां है। इससे परिवर्तन के लिये सबसे अधिक आवश्यक गति पैदा होती है। फिर 'हीगेल की द्वंदवादी प्रक्रिया के बाद और प्रतिवाद के संघर्ष से नये गुण का आविर्भाव यही गुणात्मक परिवर्तन है। द्वंद्वात्मक की तीन अवस्थाएं है - वाद (Thesis), प्रतिवाद (Antithesis), संवाद (Sinthesis)।
क्रिया और परिणमन का सिद्धांत
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