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तथागत बुद्ध ने संयुक्त निकाय में असंवर-संवर का निरूपण किया है। धम्मपद में उन्होंने कहा है- “भिक्षुओं! आंख का संवर उत्तम है, श्रोत्र का संवर उत्तम है। जिह्वा का संवर, मन, वाणी और शरीर का संवर उत्तम है। जो भिक्षु पूर्णतया संवृत है वह समग्र दुःखों से शीघ्र ही छूट जाता है।46 - ठाणांग में 10 प्रकार के संवरों का उल्लेख मिलता है।47क
संवर आश्रव का प्रतिपक्षी है। आश्रव के बीस प्रकारों का उल्लेख किया जाता है, उनके प्रतिपक्ष में बीस संवर की संख्या भी प्रतिपादित है।47ख
(5)बीस प्रकार1. सम्यक्त्व संवर 2. विरति संवर 3. अप्रमाद संवर 4. अकषाय संवर 5. अयोग संवर 6. प्राणातिपात विरमण संवर 7. मृषावाद विरमण संवर 8. अदत्तादान विरमण संवर 9. अबह्मचर्य विरमण संवर 10. परिग्रह विरमण संवर 11. श्रोत्रेन्द्रिय संवर 12. चक्षुरिन्द्रिय संवर 13. घ्राणेन्द्रिय संवर 14. रसनेन्द्रिय संवर 15. स्पर्शनेन्द्रिय संवर 16. मन संवर 17. वचन संवर 18. काया संवर 19. भण्डोपकरण संवर 20. शूची कुशाग्र मात्र दोष सेवन न करना संवर
यह योग आस्रव का प्रतिपक्षी है। सावद्य-निरवद्य सर्व प्रवृत्तियों, क्रियाओं का निरोध अयोग संवर है।
प्रथम पांच संवर की चर्चा पहले की जा चुकी। शेष 15 प्रकार निम्नानुसार है(6) प्राणातिपात विरमण- हिंसा करने का त्याग करना। (7) मृषावाद विरमण संवर- झूठ बोलने का त्याग करना। (8) अदत्तादान विरमण संवर- चोरी करने का त्याग करना।
क्रिया और अन्तक्रिया
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