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(9) मैथुन विरमण संवर - मैथुन-सेवन का त्याग करना।
( 10 ) परिग्रह विरमण संवर - परिग्रह और ममता भाव का त्याग करना ।
(11) श्रोत्रेन्द्रिय संवर - अच्छे-बुरे शब्दों में राग-द्वेष करनाोत्रेन्द्रिय आश्रव है। श्रोत्रेन्द्रिय को वश में करना, शब्दों में राग- द्वेष न करना श्रोत्रेन्द्रिय संवर है।
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(12) चक्षुरिन्द्रिय संवर - चक्षुरिन्द्रिय को वश में करना, अच्छे-बुरे रूपों में रागद्वेष न करना चक्षुरिन्द्रिय संवर है।
(13) घ्राणेन्द्रिय संवर - सुगंध - दुर्गन्ध में राग-द्वेष करना घ्राणेन्द्रिय आश्रव है। घ्राणेन्द्रिय को वश में करना, सुगंध या दुर्गन्ध में राग-द्वेष न करना घ्राणेन्द्रिय संवर है।
(14) रसनेन्द्रिय संवर- स्वादिष्ट अथवा अस्वादिष्ट पदार्थों में राग-द्वेष करना रसनेन्द्रिय आश्रव है। रसनेन्द्रिय को वश में करना, किसी भी स्वादिष्ट या विपरीत वस्तु में राग-द्वेष न करना रसनेन्द्रिय संवर है।
(15) स्पर्शनेन्द्रिय संवर - स्पर्शनेन्द्रिय को वश में करना, अनुकूल-प्रतिकूल स्पर्शो में राग-द्वेष न करना स्पर्शनेन्द्रिय संवर है।
(16) मन संवर- अच्छे-बुरे विचारों का पूर्ण निरोध मन संवर है।
(17) वचन संवर - शुभाशुभ दोनों प्रकार के वचनों का सम्पूर्ण निरोध वचन संवर है।
(18) काय संवर - शुभाशुभ दोनों प्रकार की कायिक क्रिया का संपूर्ण निरोध काय संवर है।
( 19 ) भंडोपकरण संवर - भंडोपकरणों का सेवन न करना भंडोपकरण संवर है। मुनि के लिये उनमें ममत्व न करना अथवा उनकी अयतना न करना संवर है।
(20) शूची - कुशाग्र मात्र दोष सेवन न करना संवर- प्रत्याख्यान क्रिया पूर्वक शूची - कुशाग्र मात्र दोष का सेवन न करना संवर है।
सत्तावन भेदों की विवेचना - प्रकारान्तर से संवर के अधिकतम 57 प्रकार मिलते हैं। इनमें गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षाएं, परीषह और सामायिकादि चारित्र को परिगणित किया गया है। उनका स्वरूप निम्नानुसार है
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या: क्रिया