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जीव उत्पन्न होता है। यदि कर्म नहीं होते तो जैविक सृष्टि में विविधता भी दृष्टिगोचर नहीं होती।
कुछ और भी ऐसे प्रश्न हैं जिनका समाधान पुनर्जन्म की स्वीकृति के बिना संभव नहीं है। माता-पिता के आचार -विचार, व्यवहार, पारिवारिक वातावरण समान होने पर भी व्यक्तियों में अन्तर कैसे ? उनकी भिन्नता का कारण क्या है ?
मनोविज्ञान में वैयक्तिक भिन्नता का कारण आनुवांशिकता तथा परिवेश माना जाता है ये दोनों व्यक्ति के जीवन को अत्यधिक प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारक हैं। पारिवारिक सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा शैक्षणिक आदि परिस्थितियां सभी परिवेश के अन्तर्गत आ जाती हैं। आनुवंशिक गुणों का निश्चय क्रोमोसोम द्वारा होता है। क्रोमोसोम अनेक जीन्स का एक समुच्चय है। व्यक्ति की मानसिक तथा शारीरिक क्षमताएं उसी में सन्निहित हैं किन्तु उन्हें भी मूल कारण नहीं माना जा सकता। कोई आनुवांशिकता भी व्यक्ति के पूर्व कर्मों से अप्रभावित नहीं है। ज्ञातव्य है कि प्रत्येक जीन में 60 लाख आदेश अंकित होते हैं। प्रश्न होता है कि इन आदेशों में कौनसा सक्रिय होगा और कौनसा निष्क्रिय होगा। ये आदेश कहां से आएं? मनोविज्ञान के पास इसका कोई उत्तर नहीं है। कर्मशास्त्र में इसका समाधान खोजा सकता है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ के अनुसार ये आदेश कर्म शरीर के संवादी केन्द्र कहे जा सकते हैं। अध्यात्म शास्त्र के अनुसार सारे आदेश और निर्देश कर्म शरीर से प्राप्त होते हैं।
जो शक्ति, प्रतिभा, विलक्षणता भगवान महावीर और भगवान बुद्ध में थी वह न तो वर्तमान जीवन का परिणाम है, न वातावरण और परिस्थिति का योगदान। यह पूर्व जन्म के संचित संस्कारों का फलित है।
क्रिया की प्रतिक्रिया, ध्वनि की प्रतिध्वनि, बिम्ब का प्रतिबिम्ब निश्चित देखा जाता है। कर्म का कर्ता स्वयं व्यक्ति है, परिणाम प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न होता हैं।
पूर्वजन्म की स्मृति पुनर्जन्म का ठोस आधार हैं। जैनागमों में उल्लेख है - पूर्व भव के स्मरण से नारक जीवों का वैर दृढ़तर हो जाता है।
भगवान महावीर के पूर्वभवों का उल्लेख विशेषावश्यक भाष्य, आवश्यक चूर्णि, आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति, आवश्यक मलयगिरि वृत्ति आवश्यक नियुक्ति, आदि में मिलता है। कल्पसूत्र की टीकाओं में सत्ताईस भवों का विवेचन है। पार्श्वनाथ के दस भवों की विवेचना त्रिषष्टि श्लाका पुरूष चरित्र, कल्पसूत्र की टीका आदि में मिलता है। क्रिया और पुनर्जन्म
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