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भगवान पार्श्व के साथ कमठासुर की वैर परम्परा कई जन्मों तक बनी रही है। उत्तराध्ययन सूत्र का नमि प्रव्रज्या, चित्तसंभूतीय' मृगापुत्र इक्षुकारीय' आदि घटनाएं पुनर्जन्म के अस्तित्व को प्रमाणित करती है। पुनर्जन्म स्मृति के कारण
पूर्वजन्म या पुनर्जन्म में जिनका विश्वास नहीं है, उनके विशेष रूप से दो तर्क हैं - 1. यदि पूर्व भव है तो स्मृति क्यों नहीं ? 2. आत्मा की गति-आगति दिखाई क्यों नहीं देती ?
इस संदर्भ में विचारणीय तथ्य यह है कि - भूतकाल की स्मृति नहीं होने मात्र से पूर्व जन्म का अस्तित्व अस्वीकार नहीं किया जा सकता। दैनन्दिन की घटनाएं भी जब विस्मृत हो जाती हैं तो पूर्व जन्म की घटनाओं का याद रहना अनिवार्य नहीं है। उनकी विस्मृति स्वाभाविक है। स्मृति का हेतुभूत ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम भी सबका समान नहीं होता।
आत्मा के प्रत्यक्ष न होने के दो कारण हैं- 1. आत्मा अमूर्त है 2. आत्मा सूक्ष्म है। सूर्य के प्रकाश में नक्षत्र - गण अदृश्य हो जाते हैं किन्तु इससे उनका अभाव नहीं होता, वैसे ही हमारे जानने की क्षमता की कमी के कारण किसी सत् पदार्थ का अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता।
शरीर शास्त्र के अनुसार सात वर्ष के बाद शरीर के पूर्व परमाणु बदल जाते हैं, नये अवयव बन जाते हैं। इस आमूलचूल परिवर्तन में भी आत्मा का विनाश नहीं होता तब मृत्यु के बाद अस्तित्व कैसे समाप्त हो सकता है?
आत्मा की गति-आगति नहीं दीखती। किन्तु नहीं दीखने मात्र से वस्तु का अभाव नहीं हो जाता। परिवर्तन पदार्थ का धर्म है। परिवर्तन को जोड़ने वाली कड़ी आत्मा है। वह अन्वयी है। पूर्व जन्म और उत्तर जन्म दोनों उसकी अवस्थाएं हैं। ___आचारांग भाष्य में पूर्वजन्म की स्मृति के चार कारणों का निर्देश है - 1. मोहनीय कर्म का उपशम 2. अध्यवसान शुद्धि 3. ईहापोह 4. मार्गणा - गवेषणा। कुछ व्यक्तियों को जन्म-जात पूर्वजन्म की स्मृति नहीं होती किन्तु निमित्त मिलने पर जागृत हो जाती है। सुश्रुत संहिता में भी कहा है- शास्त्राभ्यास के द्वारा भावित अंत: करण वाले मनुष्य को पूर्व जन्म की स्मृति हो जाती है
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया