________________
जैनेटिक विज्ञान के अनुसार जीन को बदल कर पूरे व्यक्तित्व का परिवर्तन किया जा सकता है।123 यह बदलने की प्रक्रिया है, उस प्रक्रिया से समग्र चेतना को नया आयाम दिया जाता है।
मनोविज्ञान में व्यक्तित्व का अंकन मुख्यत: तीन आधारों पर किया जाता हैआनुवांशिकता, पर्यावरण और व्यक्तिगत संस्कार। किन्तु केवल इन आधारों पर व्यक्ति के व्यक्तित्व की समग्र व्याख्या नहीं की जा सकती। आनुवंशिकता आचरण और व्यवहार को प्रभावित करती है। पर्यावरण का भी व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। इनसे भी महत्त्वपूर्ण तत्त्व जीन्स है। जीन के सिद्धांत की तुलना यदि कर्म से की जाये तो अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है। आनुवंशिकता आदि का सम्बन्ध वर्तमान जीवन से है। कर्म का सम्बन्ध जीव से है, जिसमें अनेक जन्म की प्रतिक्रियाएं संचित होती हैं।
कर्म की प्रकृति में परिवर्तन का सिद्धांत भी महत्वपूर्ण है। बंधकाल में कर्म के परमाणु एक प्रकार के होते हैं, बाद में उन परमाणुओं की जाति बदल जाती है। नस्ल परिवर्तन का सिद्धांत इसका पोषक है। आधुनिक जीवविज्ञान की नई अवधारणाएं संक्रमण सिद्धांत की उपजीवी हैं। जीन्स को बदल कर पूरी पीढ़ी का कायाकल्प किया जा सकता है। संक्रमण का सिद्धांत पुरूषार्थ का सिद्धांत है। अपने सद्-असद् आचरण से पाप और पुण्य को क्रमशः पुण्य और पाप में परिणत किया जा सकता है। स्थानांग सूत्र में इस परिप्रेक्ष्य में चार विकल्पों का निर्देश मिलता है। 124
1. सुभे नाममेगे सुभ विवागे। 2. सुभे नाममेगे असुभ विवागे। 3. असुभे नाममेगे सुभ विवागे। 4. असुभे नाममेगे असुभ विवागे।
एक कर्म बंधन के समय शुभ होता है पर विपाक तक पहुंच अशुभ बन जाता है। एक कर्म बंधन के समय अशुभ होता है। परिपाक काल में वह पुण्य रूप में परिणत हो जाता है। कुछ कर्म बंध के समय शुभ-अशुभ होते हैं, परिणाम में भी यथावत रहते हैं। पुरूषार्थ या प्रयत्न सापेक्षता इसमें एक कारण है।
स्थानांग की तरह बौद्ध साहित्य से भी उपर्युक्त तथ्य की पुष्टि होती है-125 1. कितने ही कर्म ऐसे होते हैं जो कृष्ण होते है और कृष्ण विपाकी होते हैं।
क्रिया और पुनर्जन्म
215