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तथा अप्रथम दोनों समय में होनेवाली क्रिया तदुभय समुदान क्रिया है।206 दूसरे शब्दों में,चालू काम को बंद करके कुछ समय के बाद पुन: प्रारंभ करना सान्तर कहलाता है। निरन्तर-अन्तर रहित कार्य करना है। कुछ व्यक्ति सान्तर क्रिया करते हैं, कुछ अनन्तर भी। ये सभी सामुदानिक क्रिया के प्रकार है। setaferent ferien (Urges That Produce Instantaneous Inflow)
ईर्या और पथ इन दो शब्दों से निष्पन्न है ईर्यापथ शब्द। ईर्या का शाब्दिकी अर्थ हैगति यानी प्रवृत्ति। पथ शब्द का अर्थ है- हेतु। ईर्यापथिक क्रिया में केवल प्रवृत्ति योग या चंचलता ही कर्म बंध की हेतु है। इसमें कषाय का योग नहीं है। 207 कषाय संयुक्त आत्मा के साम्परायिक क्रिया होती है। भगवती के प्रथम शतक में ईर्यापथिकी का सम्बन्ध मात्र काययोग से माना है। उसी सूत्र के सातवें शतक में उसका सम्बन्ध अकषाय से है।
सिद्धसेन ने अकषाय के दो प्रकार किये हैं-वीतराग और सरागा वीतराग अकषाय के तीन प्रकार हैं- उपशान्तमोह, क्षीणमोह और केवली। कषाय की अनुदय अवस्था में संज्वलन कषाय वाला भी अकषायी होता है। वह सराग अकषायी है। 208 इसके समर्थन में उन्होंने ओघनियुक्ति की एक गाथा उद्धृत की है। ओघनियुक्ति की वृत्ति में द्रोणाचार्य ने लिखा है-जो मुनि ज्ञानी है, अप्रमत्त है, उसके काययोग से कोई प्राणी मर जाता है तो भी उसे साम्परायिक कर्म का बंध नहीं होता, केवल ईर्यापथिक कर्म का बंध होता है।209 भगवती में इसका संवादी प्रकरण है
गौतम- भंते ! संवृत्त अनगार आयुक्त दशा (तन्मय होकर) में चलता है, खड़ा होता है, बैठता है, लेटता है, वस्त्र-पात्र, कंबल, पाद-प्रौञ्छन लेता है, रखता है। उसे ऐर्यापथिकी क्रिया होती है या सांपरायिकी क्रिया ?210
भगवान महावीर ने कहा -गौतम ! उसके ऐापथिक बंध होता है, साम्परायिक नहीं क्योंकि जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ व्यवच्छिन्न हो जाते हैं, उसके ऐपिथिकी क्रिया होती है। व्यवच्छिन्न नहीं होने से साम्परायिकी क्रिया होती है। अथवा शास्त्र के
अनुसार चलने वाले के ऐर्यापथिकी और शास्त्र के विपरीत चलने वाले के साम्परायिकी क्रिया होती है।211 वृत्तिकार के अनुसार उपशांत मोह, क्षीणमोह, और सयोमी केवली क्रमश: ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में नामकर्म के उदय के कारण से योग की शुभ प्रवृत्ति होती रहती है, उससे सात वेदनीय कर्म के दलिकों का बंध भी होता है किन्तु कषाय रहित होने से प्रकृति बंध और प्रदेश बंध ही होता है, स्थिति एवं अनुभाग बंध नहीं होता। क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप
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