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भाव, संवेग और स्वास्थ्य
स्वास्थ्य के साथ भाव और संवेग का क्या सम्बन्ध हैं ? यह चर्चनीय विषय है। भाव जब संवेग बनते हैं तब स्वास्थ्य प्रभावित होता है। संवेग और स्वास्थ्य का माध्यम है - शरीर । शरीर का मुख्य अंग है - मस्तिष्क । उसके दो विभाग हैं- (1) लिम्बिक सिस्टम और (2) हाईपोथेलेमस (Hypothalemus) । हाईपोथेलेमस संवेगों का उद्गम स्थल है। यहीं से संवेगों का संचालन एवं नियंत्रण होता है। जब -जब संवेग प्रबल होते हैं, शरीर की बाह्य एवं आन्तरिक व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जाती है। बाह्य परिवर्तनों में तीन मुख्य है- 1. मुखाकृति अभिव्यंजन (Facial Expression ) 2. स्वराभिव्यंजन (Vocal Expression) 3. शारीरिक स्थिति ( Bodily Posture)
आन्तरिक परिवर्तन निम्नानुसार हैं
1. श्वास की गति में परिवर्तन (Changes in respiraton)
2. हृदय की गति में परिवर्तन (Changes in Heart beat )
3. रक्तचाप में परिवर्तन (Changes in blood pressure)
4. पाचन क्रिया में परिवर्तन (Changes in gestro intestinal or digestive function)
5. रक्त में रासायनिक परिवर्तन (Chemical changes in blood)
6. त्वक् प्रतिक्रियाओं तथा मानस - तरंगों में परिवर्तन (Changes in sychoga responses and brain waves)
7. ग्रंथियों की क्रियाओं में परिवर्तन 5ख (Changes in the activities of the glands)
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90 प्रतिशत बीमारियां भावात्मक होती हैं। स्थूल शरीर में प्रकट होने से पहले बीमारी भाव जगत् में उतरती है। वैज्ञानिक शोध से यह प्रमाणित भी हो चुका है। विज्ञान के अनुसार व्यक्ति का आभामंडल बीमारी की पूर्व सूचना दे देता है क्योंकि स्वास्थ्य का सम्बन्ध भावों से जुड़ा है और आभामंडल भावों का प्रतिनिधित्व करता है।
हम केवल बाहर रोग का कारण खोजते हैं, कीटाणु ( germss) पर अधिक ध्यान देते हैं। भाव को गौण कर देते हैं, वस्तुतः व्यक्ति की प्रतिरोधात्मक शक्ति (Resistance Power or Immunity System) बाह्य तत्त्वों से अधिक भाव विशुद्धि,
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या: क्रिया
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